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जीवंधर स्वामि चरित
नंदाव्य के साथ गोदावरी का विवाह
एक वाक्य बोले सर्व, लखि जोवंधर सैन । जीत्यो है नंदान्य इह, जाके मृग से नैन ॥१४६।। तब विवाह विधि करि नृपति, परणायो नंदाढ्य । दीनी पुत्री प्रापनी, गोदावरी गुणाज्य ॥१५०।।
इति श्री जीवंधरस्वामिचरित्रे महापुराणानुसारेण वालावनोष भाषायां बाललीला-विद्याभ्यास भीस-विजय-विमोचन नंदाब्य-विवाहप्ररूपणो नाम प्रथमोध्यायः ॥१॥
। द्वितीय अध्यास
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गगनवल्लभ के विद्याधर राजा रानी वर्णन--- .. . सुनी और इक बात महारस की भरी,
भरत क्षेत्र वैलान्य श्रेरिण दधरण परी। अमर नगर, सम नमर गगनवसभ जहां,.
विद्याधर भूपाल गरूडवेगो तहां ॥१॥ भाइनि काठ्यो सोइ थान भूपती,
तब तिन कियो विचार रहन को सुभमती । रतनसोध कै. मांहि नाम मनु जो. दयो..
परवत देखि मनोगि चित्त हरषित भयो ।।२।। जहां वसायो नगर नाम रमरणीय जो,
तहां रह्यो खग भूप शांति रस पीय जो। ताकै नारि स्वरूप धारिणी नाम है,
सुता नाम गंधर्ववता गुणघांम है ॥३॥