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________________ १४ महाकवि दौलतराम कासलीवाल --व्यक्तित्व एवं कृतित्व सोऊ चाल्यो देखिवा, इन को युद्ध बिसाल । लरे सेठ सुत भील सौ, जीवंधर गुणमाल ॥ १३६ ॥ आठों भाई एकल परे भील दल मांहि । बांस चलाये या विधी कर दुष्ट हटांहि ।।१३७।। 3 र विद्या में निपुन ए. धनुरवेद के मूल । ' सर सांधे अति सीघ्र ही, लखि न सकें प्रतिकूल ।। १३८ ।। वन दें नहि बांन पर श्रावत बांरंग कटांहि । चोट चुका पारकी, पर करें चोट रोकेँ अपने बांन हैं, पर के वांन जाय संचरे पर सिरे, धारें जुद्ध या विधि ररंग करि रिपुनि कीं, जीति जीवंधर को लोक में, प्रकटी कला अतीव ।। १४१ ॥ छुड़ाए जीव । कराहि ॥१३६॥ अनेक । विवेक ॥१४०॥ - ज्यों दुरंनेय को दलि महा, जय पावै नय सार । बुल मलि दल दुष्ट कौं, जीत्यो साह कुमार ।। १४२ ।। वरच विजे लुखिमी प्रगट, आयो नगर मकार । अपने जस करि दस दिसा, पूरवती प्रविकार ।। १४३ ।। !! - कुंद पहुप पर हंस पख, जा सम उज्जल नाहि । ग्रेस उज्जल परम जस, प्रगट्यो पिरथी मांहि || १४४ ॥ देह कंवर को ग्रांच तरु, पहुप सूर पण रूप 1 कीरति भई सुगंधता, अद्भुत अतुल अनूप ॥। १४५।१५ लोक नेत्र भमरा भये, परं प्रत्रिप्ता होय । या विधि आये घर विषे लोक वेढिया सोय || १४६॥ राज पुरोहित भूप में कही बात परकासि । कंबर लार साह सुत, लरे बहुत गुरारासि ।।१४७।। तब बुलाय नृप पूछिया, तुम श्रठनि में कौन । जीत्यो भील गणांनितें, सो भाखी तजि मौंन ॥ १४८ ॥
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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