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महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पछे दाह झुर उपज्यो मोकौं, कही कहांली वेदन तोकौं । तब मैं भयो भिष्ट प्राचारा, चारित रहित सांग इह धारा ।।११४।। जिनमत की श्रद्धा है मेरे, जैसी उर में श्रद्धा तेरे । धर्म भ्रात मोकों तुम जांनी, परमत को संदेह न प्रानौ ।।११५।। समाचार तांके सुनि सारा, परख्यो ताकी बहु परकारा। तब पढ़िवा गौप्यो सिवगामी, ताकै हिग जोबंधर स्वामी ।।११६।। विद्याध्ययनअर सौंपे याके सव मित्रा, जे सव वातनि मांहि विचित्रा। सो समदिष्टी इनको लेकै, कीये पंडित विद्या दकै ॥११७॥ शस्त्र शास्त्र आदिक बहु विद्या, छंदादिक सहु पद्यर गद्या। कुबर पढ़ाए महा सुबुद्धी, थोड़े दिन में भये प्रबुद्धी ।।११८।। ज्यौं दीपति करि सूरिज सौहे, त्या विद्या करिए मन मोहे । वालदसातै जोवन माहो, आये श्रीगंपर सक नाही ।।११।। तव पारिजवर्मा सुखदाई, तजि परभेष हुवो मुनिराई । गहि निज ध्यान लह्यो शिवधामा, जहां विराजे केवल रामा ।१२०।। अब तुम सुनौ कंवर परतापा, नगर तनी मेट्यो संतापा । महा सुभट बर बीर सु धीरा, पर जीवनि की हइ जु पीरा ॥१२१।।
__ दोहा
कालकुट भील द्वारा नगर में उत्पात--
कालकूट नामा कुधी, मुखिया भीलनि माहि । पापी प्रगट्यो ता समैं, जाकै करुणा नांहि ॥१२२।। अति कारौ अति कुटिल जो, वह अकारौ सोइ । सुनते जाको नाम ही, धीरज धरै न कोइ ॥१२३।। धनुष वान धारयां रहै, राती प्रांखि विरूप । पढ़ी है र भ्रकुटी सदा, रुद्र ध्यान को रूप ॥१२४।।