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१०२ महाकवि दौलतराम कासलीवाल- व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कया। जिससे इस महान ग्रन्थ का स्वाध्याय भी सुगमता से हो सके। भाई राममल्ल ने वहीं से दौलतराम को पत्र भेजा; जिसमें सारी वस्तु स्थिति का दिग्दर्शन कराया। महाकवि को भाई रायमल्ल का आग्रह स्वीकार करना पड़ा। इस घटना को कवि ने हरिवंश पुराण को प्रशस्ति में उल्लेख किया है । २२ रिषभदास :
'पुण्यात कथाकोश' की रचना तथा धार्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रोर सबसे अधिक प्रेरणा देने वालों में रिषभदास का नाम उल्लेखनीय है। इन्हीं के उपदेश से कवि मिथ्याचरण त्याग कर सम्यक आचरण की प्रोर प्रवृत्त हुए थे । महाकवि ने रिषभदास की प्रशंसा में निम्न पंक्तियां लिखी हैं
रिषभ उपदेस सो हमे
मिथ्यातम को त्याग के लगो धरम सौ प्रीति ॥२१॥ रिषभदेव जयवन्त जग, सुखी होहु तसु दास । जिन हमकों जिन मत विषे, कौयो महा गहास ||२२||
२३ सदानन्द :
सदानन्द श्रागरा की अध्यात्म शैली के प्रमुख सदस्य थे। कवि ने "सदानन्द है श्रानन्द मई, जिनमत की प्राज्ञा तिह लही" - शब्दों में इनका स्मरण किया है।
२४ सीताराम सवाईराम
ये दोनों महाकवि के समय के ग्रन्थ-लेखक थे । महाऋषि हरिवंश पुराण की भाषा टीका बोलते गये थे और ये दोनो उसे लिखते गये थे । उसका उल्लेख कवि ने निम्न प्रकार किया है
सौताराम जुलेखका और सवाई राम ।
तिन पर लिखवायो जु यह, बहुत कथा को धाम ||
२५ हरिदास
ये उदयपुर के रहने वाले थे। सभा के ये प्रमुख श्रोता थे तथा उनके
यहां पर कवि द्वारा संचालित शास्त्रविशेष सम्पर्क में रहते थे । कवि ने
'अध्यात्म बारहखडी' की प्रशस्ति में इनका विशेष रूप से स्मरण किया है ।
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