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प्रस्तावना
'महाकवि दौलतराम' जब जयपुर आ गये; तब उन्होंने कवि को पद्मपुराण की भाषा करने के लिए विशेष प्राग्रह किया जिसका कवि ने उक्त अन्य प्रशस्ति में निम्न प्रकार उल्लेख किया है
रायमल्ल साधर्मी एक, जाके घट में स्व-पर विवेक । दयावंत गुणवंत सुजान, पर उपकारी परम निधान ।। दौलतराम जु ताको मित्र, तासों भाष्यो वचन पवित्र । पद्मपुराण महाशुभ ग्रंथ, तामें लोक शिखर को पंथ ।। भाषा रूप होय जो यह, बहुजन वांचं करि प्रति नेह । ताके वचन हिये मै धार, भाषा कीनी मति अनुसार ।।
इसके पूर्व भाई रायमल्ल महापण्डित टोडरमल के घनिष्ट सम्पक में प्रा चुके थे। उन्होंने सिंधारणा जाकर गोम्मटसार जैसे महान एवं विशाल ग्रंथों की भाषा टीका करवाने में सफलता प्राप्त की ।'
महापण्डित टोडरमलजी भी भाई रायमल्ल से काफी प्रभावित थे । उन्होंने निम्न शब्दों में उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है
रायमल्ल साधर्मी एक, धर्म सधैय्या सहित विवेक । सो नाना विधि प्रेरक भयो, तब यहु उत्तम कारज सयो ।।
संवत् १६२१ में जयपुर में जो इन्द्रध्वज महोत्सव हुआ था, उसका भाई रायमल्ल ने अतीव सजीव वर्णन किया है। उससे सत्कालीन जयपुर नगर की साहित्यिक, सांस्कृति एवं पार्मिक गतिविधियों का भलीभांति परिचय मिलता है।
संवत् १८२७-२८ में रायमल्ल मालवा देश गये हुए थे। यहां उन्होंने महाकवि दौलतराम द्वारा भाषा में निबद्ध आदि पुराण एवं पद्मपुराण का प्रवचन किया। दोनों ग्रन्थों को सुनकर सभी आवक हर्षित हो गये और उनमें स्वाध्याय की रुचि में वृद्धि हुई। उसी समय वहां के श्रावकों ने भाई रायमल्ल से दौलतराम के द्वारा हरिवंश पुराण की भी टीका करने का निवेदन
१ शुभ दिन टीका प्रारम्भ हुई..........."वे तो टीका बरगवते गये ।
हम बांचते गये । बरस तीन में चारि प्रवां की ६५००० टीका भई। पीछे जयपुर पाए ।