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________________ १०० महाकवि दौलत राम कासलीवाल--व्यक्तित्व एवं कृतित्व २. रतनचन्द दीवान : पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ ने इनका दीवान माल संवत् १५१३ से १८२५ तक का माना है। महाकवि दौलतराम से इनका परिचय उनके अन्तिम दिनों में हुमा पा; जिसका उल्लेख उन्होंने अपने हरिवंश पुराण की प्रगस्ति में "रतनचन्द दीवान एक, भूपत के परचांन" के रूप में किया है। इस पंक्ति के ग्राघार पर इनका संवत् १८२५ के बाद भी दीवान होना जाहिर होता है। दीवान रतनचन्द महापंडित टोडरमल की शास्त्रसभा के विशेष श्रोसायों में से थे और पंडित जी का पूरा सम्मान करते थे। भाई रायमल्ल ने अपनी पत्रिका में उस समय के जिन दो दीवानों का उल्लेख किया है। उनमें एक रतनचन्द तथा दूसरे दीवान बालचन्द छाबड़ा थे । इन्होंने जयपुर में बघीचन्द जी के मन्दिर का निर्माण कराया था और मन्दिर निर्माण करने के पश्चात लसे अपने बड़े भाई के नाम से प्रसिद्ध किया था। २१ भाई रायमल्ल : भाई रायमल्ल' महाकवि दौलतराम के समकालीन श्रावक थे । धर्म एवं साहित्य प्रचार की उत्कट प्रेरणा लेकर वे विद्वानों की सेवा में जाते थे और उनसे नव साहित्य निर्माण का सानुरोध निवेदन करते थे । जहां भी उन्हें विद्वान एवं पण्डित दिखाई देते थे, वे उनके पास जाकर अपनी हार्दिक भावनाएं प्रस्तुत करते । उनका जन्म संवत् १७७० के लगभग माना जाता है । बचपन में ही इन के ज्ञान की पिपासा बढ़ने लगी और २२ वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने साहिपुरा के विद्वान् श्रावक नीलपति साहूकार से धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया और उसके पश्चात् ही वे पूर्ण संयमित जीवन व्यतीत करने लगे एवं जान-वृद्धि को ही एक मात्र अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया । संवत् १८०५ के पूर्व ही वे महाकवि दौलतराम से मिलने उदयपुर पहुंचे। वहां की प्राध्यात्मिक शैली एवं वहां के श्रावकों में धर्म प्रचार को देखकर उन्हें अत्यधिक सन्तोष हुना। इम घटना का भाई रावमल्ल ने अपने पत्र में निम्न प्रकार उल्लेख किया है ___ "जहां दौलतराम के निमिन करि दस बीस साधर्मी व दस बीस बायां सहित शैली का वाणा बाण रझा-ता अवलोकन करि साहिपुरा पारला याया।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
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