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प्रस्तावना
गहरी रुचि थी । जीवघर चरित की रचना करने के लिए कवि से इन्होंने भी प्राग्रह किया था। इसी तरह वसुनन्दि श्रावकाचार की टब्बा टीका करने के लिए उन्होंने विशेष माग्रह किया था । २ जब तक दौलतराम उदयपुर में रहे, तब तक बेलजी सेठ इनके विशेष प्रशंसक रहे ।
१८ भूधरदास :
'भूपरदास' महाकवि दौलतगम के समकालीन विद्वान थे । पुण्यानवकथा सोया को प्रशस्ति में साथ नहीं भर गया है। ये ही भूधरदास हैं। जिन्होंने 'पाशवपुराण' जैसे प्रबन्ध काव्य की रचना संवत् १७८९ में समाप्त की थी। आगरा की अध्यात्म शैली के ये प्रमुख विद्वान थे। कवि का सर्व प्रथम इन्हीं से परिचय हुया और इन्हीं की प्रेरणा से वे साहित्य निर्माण की पोर प्रवृत्त हुए । इनका विस्तृत परिचम प्रस्तावना ११ के पृष्ठ पर देखिए ।
१६ मनोहरदास :
जब महाकवि उदयपुर में महाराजकुमार माधोसिंह के मंत्री बनकर गये तो उन्होंने बह भी दि. अन अग्रवाल मन्दिर में शास्त्र प्रवचन प्रारम्भ किया
और प्रागरा के समान ही उसे भी प्रध्यात्म शैली का रूप दिया । इस शैली के प्रमुख सदस्यों में मनोहरदाम का नाम उल्लेखनीय है। मनीहरदास ने कवि से अध्यात्म मारहखड़ी को छन्दोबद्ध करने का विशेष प्राग्रह किया था; जिसका उल्लेख स्वयं कवि ने उसकी प्रशस्ति में किया है।
१. सुनी चतुर मुख बात, सोहि दौलति उर धारी ।
सेठ बेलजी सुघर, जाति हूंमड हितकारी ।। सागवाड़ है वास, श्रवण की लगनि धणेरी। सब साधरभी लोक, धरै श्रद्धा श्रु त केरो ।। तिनने आग्रह करि कही फुनि, दौलति के मन मैं वसी।
संस्कृत ते भाष कीनी, इहै कथा है नौर सी ||७|| २. बोले सेठ बेलजी नाम, सुनि नृप मंत्री दौलतिताम ।
टब्बा होय जो गाथा तनी, पुण्य उपजै जिसको घनौ ।।