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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्राग्रह किया था.; . जिसका कवि ने प्र.प्रशस्ति में निम्न प्रकार उल्लेख किया है
सब गिरंथ की बनि न पाव, तो इह जीवंधर तनी।
अवसिमेव करनी सुभाषा, प्रथीराज भी इह भनी ।।६।। १४ फतेचन्द :
आगरा नगर के अध्यात्म शैली के प्रमुख सदस्यों में फतेचन्द का नाम भी उल्लेानी. फतच.६ प शमय के प्रतिष्ठित श्रावक थे तथा शास्त्रों की चर्चा में सदैव तल्लीन रहते थे। ये प्रतिदिन शास्त्र-प्रवचन मैं जाते और नयी-नयी चर्चाय करके श्रोताओं की जिज्ञासा बढ़ाते तथा विषय का स्पष्टीकरण करते थे। महाकवि दौलतराम ने अपने "पुण्यास्रव कथाकोश" में "फतेचन्द है रोचक नीके, चरचा कर हरष धरि जीके' इन शब्दों में इनकी प्रशंसा की है । फतेचन्द प्रागरा निवासी थे अथवा कवि के समान ये भी बाहर से ही वहां प्राये थे—इस सम्बन्ध में निश्चित जानकारी नहीं मिलती; क्योंकि कवि ने प्रागे "मिले भागर कारन पाय" शब्द कहे हैं । १५ बख्तावरदास :
इनका कवि ने अध्यात्म बारहखड़ी की प्रशस्ति में उल्लेख किया है । ये उनकी शास्त्र-सभा के प्रमुख सदस्य थे और कवि के विशेष सम्पर्क में रहते थे। तस्वचर्चा एवं धार्मिक-चिन्तन में विशेष योग देते थे। ये भी उदयपुर के रहने वाले थे।
१६ बिहारीलाल :
श्रावक बिहारीलाल आगरा की अध्यात्म शैली के प्रमुख सदस्य थे। प्रतिदिन शास्त्र सभा में पाते और ध्यान एवं मनन पूर्वक शास्त्र श्रवण करते थे । विद्वानों को शास्त्र-प्रवचन की ओर प्रोत्साहित करते और स्वयं भी उनकी सेवा में सदैव तत्पर रहते । दौलतराम ने इनका 'युण्यामय कथाकोश' की प्रशस्ति में सादर स्मरण किया है और इनके सम्बन्ध में निम्न पंक्तियां लिखी हैं
लाल बिहारी हूं नित सुने, जिन आगम को नीक मुनै ।। १७ बेलजी सेठ
इनका कवि ने अपनी दो कृतियों में उल्लेख किया है। ये बड़ जाति के श्रावक थे तथा सागवाड़ा के निवासी थे। शास्त्र श्रवण में इनकी