SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना ह ११ चतुरभुज अग्रवाल : एक चतुरभुज का हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। ये दूसरे चतुरभुज : हिने महाकाय यो उदयपुर जीवघर परिस: हो रचना करने के लिए प्राग्रह किया था। ये अग्रवाल श्रावक ये तथा कालाडहरा (जयपुर के रहने बाले थे । कवि के थे परम प्रशंसकों में से थे। तथा उदयपुर के अग्रवाल मन्दिर में चलने वाली शास्त्र-सभा के प्रमुख श्रोता थे। अब महाकवि ने बीम हजार श्लोक प्रमाण पाले 'महापुराण' का स्वाध्याय समाप्त किया तो इन्होंने उनसे 'जीवंधर चरित' को हिन्दी में रचने का प्राग्रह किया और इसके लिये निम्न प्राधार प्रस्तुत किया देव भाष गंभीर, संसकृत विरला जाने । पंडित करै बखान, अलप मति नाहि चखाने ।। जो है ग्रथ अनूप, देस भाषा के मांहो । बांचे बहुत हि लोक, या महै संक नाही ।। सब गिरंथ की वनि न आवै, तो इह जीवंधर तनी । अवसि मेव करनी सुभाषा, पृषीराज भी इह भनी ।।६।। सुनी 'चतुर' मुख बात, सोहि दौलति उरधारी। -इस प्रकार इन्हीं के प्रापयश दौलतराम ने 'जीबंधर चरित' की रचना प्रारम्भ की भोर संवत् १८०५ में उसे समाप्त कर हिन्दी को एक प्रबन्ध-काश्म भेंट किया। १२ पण्डित चीमा : ये उदयपुर के रहने वाले थे। स्वयं कवि ने इनको पंडित की उपाधि लगाकर स्मरण किया है। ये कवि के विशेष प्रशंसक थे तथा तत्वचर्चा में मग्न रहा करते थे । अध्यात्मबारहखड़ी के निर्माण में कवि को इनसे विप्रेष प्रेरणा मिली थी। १३ पृथ्वीराज : पृथ्वीराज संभवतः श्रावक थे तथा प० दौलतराम की शास्त्रसभा के ये नियमित श्रोता थे। जीवंधर चरित की रचना करने में इन्होंने भी कवि से
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy