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प्रस्तावना
महाकवि दौलतराम ने साम्प्रदायिक अशान्ति रहने पर भी अपना साहित्य का निर्माण का कार्य यथावत रखा और हरिवंश पुगण (संवत् १८२६ } जैसे महान ग्रन्थ की भाषा टीका करने में सफल हुए। महाकवि ने पृथ्वीसिंह के शासन काल की निम्न पंक्तियों में प्रशंसा की है
नगर सवाई जयपुरा, जहां बसे बहु न्यात । राजा पृथिवीसिंह है, जो कछुवाहा जाति ।।३।। शिरोभाग राजान में, ढूढाहड़ पति सोय ।
ताके मंत्री श्रावका, और न्यातहु होय ।।४।। ५ महाराणा जगतसिंह :
महाराणमा जगतसिंह उदयपुर के महाराणा थे। महाकवि दौलतराम ने इनका जीवघर चरित की प्रशस्ति में निम्न प्रकार उल्लेख किया है -
उदियापुर ता माहि, राजधानी प्रति सोहै । जगतसिंह महरांगा, पाट सोसोदिन को है ।।
रहै रांग के पास, रांग अति किरपा करई।
जाने नीको जाहि, भेद भाव जुनहि धरई ।।
महाराणा जगतसिंह और सबाई जयसिंह के परस्पर मधुर सम्बन्ध थे। यही नहीं, महाराजा सवाई माधोसिंह उदयपुर महाराणा की राजकुमारी के राजकुमार थे। ६ अमरपाल :
'अमरपाल' का 'पुण्यात्रव कथाकोश' में उल्लेख हुमा है । कवि ने इनकी 'परमागम को रस तिन चल्यो' के रूप में प्रशंसा की है । महाकवि धनारसीदास के साथियों में कौरपाल का नाम उल्लेखनीय है । 'सूक्तिमुक्तावली' का पद्यानुवाद बनारसीदास और कौरपाल ने मिलकर किया था।' 'अमरपाल'
१ नाम सूक्ति मुक्तावली, द्वाविंशति अधिकार । शत श्लोक परमान सब, इति ग्रंथ विस्तार ||१||
अरपाल बनारसी, मित्र जूगल इक चित्त । तिनहिं ग्रथ भाषा कियो, बहुविधि छन्द कवित्त ।। सोलहसै इक्यानवें, ऋतू ग्रीष्म वैशाख । सोमवार एकादशी, करन छत्रसित पास ।।