SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ महाकषि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व दरबार के मुतसद्दी सर्व जनी हैं और साहकार लोग सर्व जैनी है । जबपि और भी है परि गौणता रूप है मुख्यता रूप नाहि । छह, सात वा पाठ बा दस हजार जैनी महाजनां का घर पाइए है। ऐसा जैनी लोगों का समूह नग्र विर्ष नाहि पीर यहां के देश विर्ष सर्वत्र मुख्य पर्ण थावग लोग घस हैं तात एह नग्र वा देश बहोत निर्मल पवित्र है। तात धर्मात्मा पुरुष बसने का स्थानक है। अबार तो सक्षात घमंपुरी है ।" । ४ महाराजा सबाई पृथ्वीसिंह : (१७६६-१७७७) गहानी कोलतः म . पन याल तो ये यहाराजा थे। संवत् १८२४ चैत्र बदी ३ को ये जयपुर की गद्दी पर बैठे। कविवर बहतराम ने बुद्धि विलास में इनके सम्बन्ध में निम्न पद्य लिला है पृथ्वीस्यंघ विख्यात जा दिन त भूपति भऐ। मिटे सकल उत्तपात, सुखी भई सारी प्रजा ।।१८।। इनके शासनकाल के दो वर्ष पश्चात ही जयपुर राज्य में शासन पर एक वर्ग विशेष का जोर हो गया, जिसने मन्दिरों, मूर्तियों एवं उनके अनुनायियों पर बहुत अन्याय बरसाये । कवि बखतराम ने अपने बुद्धि विलास में इस घटना का निम्न प्रकार उल्लेख किया हैफुनि भई छब्बीसा के साल, मिले सकल द्विज लघु र विशाल । सनि मतो यह पक्कौं कियो, सिव उठान फुनि दूसन दियो ।।१३०७।। द्विजन आदि बहु मेल हजार, बिना हुकम पायें दरबार । दौरि देहरा जिन लिय लूटि, मूरति विघन करी बहु फूटि ।। १३८।। लेकिन जब महाराजा को इन अत्याचारों का पता लगा तो उन्होंने अपने राज्य में फिर साम्प्रदायिक सद्भाव की घोषणा की और राज्य भर में फिर से सब सम्प्रदाय के अनुयायी शान्ति पूर्वक रहने लगे। महाराजा के शासनकाल में संवत् १८२६ में सवाई माधोपुर में विशान पंच कल्याणक महोत्सव हुमा, जिसमें हजारों मूर्तियों की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। ऐसा विशाल समारोह सारे देश में अपने ढंग का अकेला था। संवत् १८२६ में प्रतिष्ठापित सैकड़ों हजारों मुतियां आज भी उत्तरी भारत के अधिकांण मन्दिरों में मिलती है। यह प्रतिष्ठा समारोह भट्टारक सुरेन्द्रकीति द्वारा सम्पन्न हुमा था।
SR No.090270
Book TitleMahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherSohanlal Sogani Jaipur
Publication Year
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, History, & Biography
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy