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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
निम्न शब्दों में प्रशंसा की है
बहुत वर्ष लौं राज किय, श्री जयस्यंघ अवनीप। जिनकै पटि बैठे स्वदिनि, ईश्वरस्यंध महीप ।।१७०।। तिनको दांन ऋपांन को, जय जस करत अपार । जिन सौं जंग जुरे तिन्है, करि छोडे पतभार ।।१७१॥
महाकवि दौलतराम में हर सासनकाल का प्रपनी लियो में उल्लेख नहीं किया है ; क्योंकि उस समय वे महाराज कुमार माधोसिंह की सेवा में उदयपुर रहते थे ।
महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह को इमारतें बनाने का बड़ा शौक था और ईश्वर लाट (सरगासूली) उन्हीं के समय में बनायी गयी थी। ३ महाराजा सवाई माधोसिंह : (१७५०-१७६७)
महाकवि दौलतराम महाराज कुमार माधोसिंह के मंत्री होकर उदयपुर गये थे और जब तक माधोसिंह जयपुर के शासक नहीं बने, तब तक वे मंत्री के रूप में उदयपुर में ही रहे । महाराजा सवाई माधोसिंह के शासनकाल में राज्य का काफी विस्तार हुमा पौर रणथम्भौर का प्रसिद्ध किला जयपुर राज्य को प्रासानी से प्राप्त हो गया। बरुतराम साह ने इनके सम्बन्ध में जो कवित्त लिखे हैं वे निम्न प्रकार है-- दोहा : वहरि पाटि बैठे नृपति, रामपुर ते प्राय ।
भाई माधवस्यंधजू, दुरजन कौं दुखदाय ।।१७३।। कवित्त : जिन रामपुर मै करी निज चाकरी,
मो धरि राखी बिचारि हिये । फिरि पाय के राज ढुढाहर को सु नऊ निधि के सुख आनि लिये ।। भनि 'राम' अपातें भले ही भले, अमरेस के से जितु दान दिये। हरि ऐक सुदामा निवाज्यो कहू', नृप माधव केई सुदामा किये ।।१७४।।