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प्रस्तावना
महाराजा जयसिंह यद्यपि रणव धर्मानुयायी थे, लेकिन जैनधर्म, साहित्य तथा संस्कृति से उनका विशेष प्रेम था और उनके शासन काल में पूरे राज्य में नये-नये जैन मन्दिरों का निर्माण होता रहा । जयपुर नगर में भी उन्होंने दो चौकड़िया (मोदीखाना एवं घाट दरवाजा) विशेष रूप से जनों को बसने के लिए प्रदान की । उनके शासन में जयपुर नगर में जिस भारी संख्या में विशाल एवं कलापूर्ण जैन मन्दिरों का निर्माण हुना, यह उनकी जैन धर्म के प्रति अनुराग का द्योतक है। कर्नल टॉड ने अपने अन्य "राजस्थान" में यह भी लिखा है कि इस राजा को जैन धर्म के सिद्धान्तों का अच्छा ज्ञान था मौर उनकी विद्या बुद्धि के कारण भी वह जैनों का काफो सम्मान एवं बाबर करता था।' इनके शासनकाल में सैकड़ों ग्रन्थों की प्रतिलिपियां की गई और उनको देश के विभिन्न भण्डारों में विराजमान किया गया। श्रीमहावीरजी क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की ओर से प्रकाशित अन्य सुचियों (५ भाग) एवं प्रशस्ति संग्रह में ऐसे सैकड़ों ग्रन्थों का उल्लेख्न पाया है, जिनकी प्रतिलिपि जयपुर में तथा राज्य के विभिन्न नगरों में हुई थी।
इनके शासनकाल में संवत् १७५८, १७६१, १७६३, १७६६, १७७२, १७७३, १७७७, १७७६, १७६१, १७६६ प्रादि में प्रतिष्ठापित मूर्तियां एवं यन्त्रराज राजस्थान के विभिन्न नगरों में उपलब्ध होते हैं। सबसे बड़ो प्रतिष्ठा इनके शासनकाल में बांसमोह (जयपुर) नगर में हुई थी, जिसे ग्रामेर गादी के भट्टारक देवेन्द्र फीति ने करवायी थी। इस संवत् का मूर्तियां जयपुर एवं राजस्थान के विभिन्न नगरों के मन्दिरों में विराजमान है।
महाराजा जयसिंह के समय में प्रामेर, सांगानेर एवं जयपुर में कितने ही विद्वान हुए, जिनमें अजयराज पाटनी, खुशालचन्द काला, नेमीचन्द, दीपचंद कासलीवाल एवं किशनसिंह के नाम उल्लेखनीय है। इन विद्वानों ने तत्कालीन शासन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। २ महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह (१७४३-१७५०)
महाराजा सवाई जयसिंह के पश्चात् महाराजा सवाई ईश्वरीसिह जयपुर की गद्दी पर बैठे । यद्यपि य अधिक दिनों तक शासन नहीं कर सके; लेकिन जितने वर्षों तक जीवित रहे, अत्यधिक कुशलता से शासन किया । इनके राज्य में अधिकांशत: शान्ति रही । कविवर बख्तराम ने इनके शासन की
१. एनल्स एण्ड एन्टोक्विटीज प्रॉफ राजस्थान--पृ. २९७