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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल पो सुत सीखोई सुरिः स न लि जे माम अरहप्त । सत्य वचन अरहंत का, हो गुरु वदिज्यो महा निरंग 1 सिद्ध चक्र त सेविज्यो हो संजम गीत चालिज्यी पंथ रास।।७।। श्रीपाल रास जिन पूजा एवं भक्ति के सुफल का एक सुन्दर काध्य है।' काव्य में कवि ने सम्यक्त्व की महिमा का विस्तृत वर्णन किया है तथा सभ्य रत्न को ही वैभव एवं ऐश्वर्य मिलने में मूल कारण दललाया है। सुदर्शन रास में मंगलाचरण के रूप जो नौबीस तीर्थकरों को वन्दना की गई है वह भक्तिरस से अोतप्रोत है। सेठ सुदर्शन को सूली से सिंहासन मिलना सेठ द्वारा भगवान की पूजा भक्ति आदि का स्पष्ट फल है। इसी तरह भविष्यदत्त चौषई में भी प्रारम्भ में सभी तीर्थकरों का स्मरण किया है। मदनद्वीप में भविष्यदत्त को जिन मन्दिर क्या मिला मानों चिन्तामणि रत्न ही मिल गया । भविष्यदत्त ने पहिले पूर्ण मनोयोग ने जिनेंद्र स्तवन किया और फिर अपने कष्टों को दूर करने की प्रार्थना की। जज स्वामी जग आधार, भव संसार उतारै पार तुम छौ सरणा साधार, मुझ संसार उतार पार भूला पंथ दिखावा हार, तुम छौ मुकती तरणा दातार ।।१६।। जिनेन्द्र भगवान की जो प्रष्ट द्रव्य से पूजा करता है उसके जन्म जन्मान्तर के दुःख स्वयमेव दूर हो जाते हैं । पुष्पों के साथ पूजा करने से थावक जन्म का वास्तविक फल प्राप्त होता है । इसी प्रकार कवि ने सभी पाठ द्रव्यों के बारे में कहा है। भविष्यदत्त जब मदन द्वीप में अकेला रह जाता है तो जिनेन्द्र स्तवन करके ही दुखों को भूल जाता है । भविष्यदत्त की स्त्री जब गर्भवती हो जाती है तो उसके १. हो पाट दिवस करि पूजा ली, गयो कोड जिम प्रहि कंचुली । कामदेव काया भइ हो अंग रक्ष राजा सिरीपाल । सिद्ध चक्र पूजा करि हो, रोग सोग न व्याप काल ।। २. हो समिकित सहित पुत्र तुम आथि. इह विभूति आई तुम साथि ।। ३. जाठ दश्य पूज्यै जिण पाइ, जन्म जन्म को दुख पुलाइ ॥११:४३ ४. जिपावर चरण पहप पुजिवा, श्रावका जन्म तम्या फल लिया ।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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