________________
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
क्या बत्त तिहा कर नीषास, आस्म चिता मन को वास । संजम फूल ते सगते घना, सिंह का सुख भुजे भष्यईना |1१३३।। सभ भाव कोईल बोलत, जिम वाणी तिही वाख फलंत ।। सरस वचन बोल गुन जान, निपज नागवेल को पान ॥१३३॥ पान फूल तोहां बहु महकाई, मुनी ध्यान मधु वरत प्रपाई।
उद्यान सरोवर अधिक गहीर, तिह को थाग सह मुनि धीर ।।१३४।।
जिन शासन नगर के राजा का नाम विमल बुध था। एक दिन जब वह वन क्रीड़ा के लिये गया तो उसने नियत्ति एवं विवेक दोनों को देख लिया। दोनों को उसने बड़ा ग़म्मान दिया और फिर उन्हें अपने घर ले गया। वह दोनों का भोजन नादि से सम्मान किया । इसके पश्चात् राजा ने निवृत्ति से :जसके पुत्र विवेक की बडी भारी प्रशंसा की और कहा कि सुमति के साथ विवेक का विवाह हो जाना चाहिये । नित्ति ने विवेक के विवाह का निम्न शब्दों में उत्तर दिया
भन निवृश्य सनो हो राय, ने छ इसी तुम्हारो भाव ।
इक सोनो इफ हीरा जो, कहो विचार न कोल वापरो ।। १४४।। दोनों के विवाह की तय्यारी होने लगी---
चौरी मंडप रच्यो विसाल, सोभ तोरन मोत्यां माल । छापे वस्त्र पटजर सार चंदन थंभ सुगंष सुचार ॥१४६।। गावं श्रिया फर बहु कोड, वर कन्या को बांष्यो मोड ।।
लगन महरत बहुत उछाह, विवेक समति को भयो विवाह ।। १४७।।
निवृत्ति सुमति वधू को पाकर अत्यधिक प्रसन्न हुई। खूब दान दिया । एक दिन उसने विमलवुध से जाने की प्राज्ञा चाही। विमलबुध ने कहा कि वे प्रवचन नमर में जावे और वहां सुख चैन से जीवन व्यतीत करें।
सुम प्रबचन नग म चलो, होसी सही तुम्हारो भलो । बंबो जाय चरन परहंत, तिहरे सुख सुवसो अनंत ॥१५१।। तिहां विवेक बाई लह, भलो पुरुष सहु कोई कह ।
कोरत बहुत होत तुम तनी, सुख संपतो तोहां मिलती घनी ॥१५२॥
विमल बुध की बात मान कर निवृत्ति विवेक एवं सुमनि तीनों प्रबचन नगर के लिये रवाना हो गये और कितने ही दिन चलने के पश्चात् वे तीनों वहां पहुंचे ।