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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल पंत प्रमाद मंत्र तसु सरणा, तिहसु मोह कर रंग घना । रात दिवस ते सेवा कर मोह सनो चह रल्या करै ।।७४।। सातों विसन सुभ्र गती राज, जान नहीं काज अकाज । निगुणा संधि सभा असमान, सोभ दुरगति सिंघासन यान ।।७।। चबर इल रित विप्ररस बरसाल, छिन्त्र परोहित पठउ फुस्पाल । कुड कपट नन कोटबाल, पाखंडी पोल्पा रखवाल 1|७६।। नगर में सभी व्यसनों की चौकड़ी जमने लगी। सभी तरह के अनैतिक कार्य होने लगे । दूसरी ओर कुमति में चेतना राजा से निवृत्ति के पुत्र विवेक को छोड़ने का प्राग्रह किया । लेकिन वहां उसकी दाल नहीं गली । तब वह मन के पास गयी पौर निम्न प्रकार परिचय दिया । बोली कुमती जोडीया हाथ, यौनती सुनो हमारी नाथ । सुरग तणो हु देवांगना, तेरा सुजस सुन्या हम घरणां ।।८।। मेरा मन बहु उपनो भाव, भली मात देखन को पाव ।। छोड़ देव आई तुथ थान, तुम देखत सुख पाके जान ॥८॥ मन राजा को कुमाल की बातें बहुत रुचि कर लगी और उसे अपनी पटरानी बना ली । कुमति ने सर्व प्रथम मन से विवेक को छोड़ने का भाग्रह किया । मन ने तत्काल उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और विवेक को बन्धन मुक्त कर दिया । कांमी पुरुष ज कोई होई, कामनी कझो न मेट कोई । तिह को छांदो घाव घनो, हि शुभ काह कामी नर तनो ॥६५| विवेक बंधन से मुक्त होकर चेतना माता के पास गया और उसके पांव खुए । विवेक को देख कर चारों ओर हर्ष छा गया। एक दिन चेतना ने निवृत्ति से कहा कि मोह पापी है दुष्ट स्वभाव का है तथा उसका स्वभाव' ही दूसरे को पीड़ा देना है इसलिये मोह के देश को ही छोड़ कर चला जाना चाहिये । निवृत्ति और यिवेक तत्काल वहां से चल दिये । जब वे प्राची दुर ही गये तो उन्हें हिंसा देश दिखायी दिया जिसमें सभी तरह के लोटे बुरे कार्य होते थे । कवि ने उसका निम्न प्रकार वर्णन किया है दोस तह र व्योहार, उपरी उपरी मार मार । हांसि निमा तिहा पती ही होह, मार कोई सराहै लोई 1१०१।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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