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________________ परमहंस गई खाने में पड़े हुए परमहंस के दुख देखे । लेकिन वे उसे छुटकारा नहीं दिला सकी । मन की एक स्त्री प्रवृति ने मोह पुत्र को जन्म दिया जो जगत में पारों प्रोर निसर होकर फिरने लगा। सो मोह सगलो संसार, धन कुटुम्ब मायो पसार । पति चार में फिराव सोई, घाल जाल म निकस कोई ॥४७!! मन की दूसरी स्त्री निवृत्ति थी । उसने "विवेक' नाम के पुत्र को जन्म दिया । विवेक अपनी नीति के अनुसार काम करने लगा। सब जीवन कुदे उपदेश, जिह थे माप्त रोग बलेस । कह विवेक सु रात विधार, सुलह इछा सुख संसार । मन राजा अपने पिता परमहंस को छोड कर माया के साथ रहने लगा । एक दिन माया ने मन से कह कर विवेक को भी बन्दी गृह में डाल दिया क्योंकि उससे भी माया को डर लगने लग गया था। निवृत्ति ने अपने श्वसुर परमहंस को सारी स्थिति समझायी और विवेक को छुड़ाने के लिये जोर देने लगी । परमहंस ने अपनी असमर्थता प्रकट की। परमहंस जप सुन बहुः पह परपंच माया का सह । निसचं परन छ चेतना, सिह के पास जाहु संक्षीना ।।६।। __ नियति रानी चेतना के पास गई और उससे विवेक पुत्र छोड़ने की प्रार्थना करने लगी । प्रवृत्ति रानी ने इसका विरोध किया और मन राजा से निम्न प्रकार निवेदन करने लगी। मोह पुत्र यारो पर बीर, मात पिता को सेवक धीर । स्वामी देई मोह के राज, सीरो सब तुम्हारो काज | मन भी प्रवृत्ति रानी के बहकावे में आ गया और उसने मोह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मोह ने अपनी नगरी बसाई और निम्न साथियों के साथ राज्य करने लगा - पुरी अज्ञान कोट चहुं पास, त्रिसना खाई सोत्र तास । मार' गति वरवाजा बण्या, दीस तहां विषै मन घई ।।७२।। मिल्या बरसन मंत्री ताप्त, सेवक आठ करम को वास । क्रोध मान उंभ परखंड, लोभ सहत तिहां निवस पंच ॥७३॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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