SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यदत्त चौपई दोनों पति-पत्नि मुखपूर्वक रहने लगे । सरूपा के कुछ वर्षों पश्चात् पुष हुषा जिसका नाम बन्धुदत्त रखा गया । वह बड़ा हुना और रत्नदीप में हमापार के लिये जाने तैयार हो गया। पिता की प्राज्ञा पाकर उसने ५०० अन्य साथियों को भी ले लिया। जब भविष्यदत्त ने अपने भाई को व्यापार के लिये जाने की बात मुनी तो उराने भी भी उसके साथ जाने की इच्छा प्रकट की और अपनी माता में प्राज्ञा लेकर भाई के साथ हो गया । लेकिन सरूपा ने बन्धुदत्त को कहा कि वह उसका बड़ा भाई है इसलिये संपत्ति का मालिक भी वही होगा । अतः अच्छा यही है कि मार्ग में भविष्यदत्त का काम ही तमाम कर दिया जाये। बन्धुदत्त अपने साथियों के साथ व्यापार के लिए चला। साथ में किरारणा एवं अन्य सामग्री ली। वे समुद्र तट पर पहुंचे और शुभ मुहरत देख कर जहाज से रत्नद्वीप के लिये प्रस्थान किया । वे धीरे-धीरे प्रागे बढ़ने लगे। जब अनुकूल हवा होती तब ही वे प्रागे बढते 1 बहुत दिनों के पश्चान् जन उन्होंने मदन द्वीप को देखा तो अत्यधिक हषित होकर वहां उतर पड़े और वहां की शोभा निहारने लगे । जब भविष्यदत्त फूल चुनने के लिये चला गया तो बन्धुदत्त के मन में पाप उपजा और अपने भाई को वहीं छोड़ कर भागे चल दिया । भवसदत फल लेगा गयो, बंधुत्त पापी देखियो । बात विचारी माता तणो, मन में कुमति उपजी परणी।।२०।। भविष्यदत्त बहुत रोया चिल्लाया लेकिन वहां उसकी कौन सुनने वाला था । अन्त में हाथ मुंह धोकर एक शिला पर गंच परमेष्ठी का ध्यान करने लगा । रात्रि को वहीं शिलातल पर सो गया। प्रातः होने पर वह एक उजाइ बन में होकर नगर में पहुंच गया और जिन मन्दिर देख कर वह उसी में चला गया और भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा करने लगा। उसने अत्यधिक भक्ति से जिनेन्द्र की पूजा की। पूजा करने के पश्चात् वह थक कर सो गया । इसी बीच पूर्व विदेह क्षेत्र में यशोधर मुनि से अच्युत स्वर्ग का इन्द्र अपने पूर्व जन्म के मित्र चमित्र के बारे में पूछता है वह किस गति में है। मुनिराज इन्द्र को पूरा वृत्तान्त सुनाते हैं और ना कहते हैं कि इस समय वह तिलक द्वीप के नगर में चन्द्रप्रभु मन्दिर में है । मुनि के वचनों को सुन कर देवेन्द्र उस मन्दिर में गया और उसे मोता हुआ देखकर मन्दिर की दीवाल पर उसने लिखा कि हे मित्र उत्तर दिशा में पांचवें घर में एक मृन्दर कुमारी है वह उसकी प्रतीक्षा में है। वह उससे विवाह करले । उस इन्द्र ने मणिभद्र को यह भी कह दिया कि वह भविष्यदत्त का समय समय पर ध्यान रखे । जब वह निद्रा से उठा और सामने लिखे हुए प्रक्षर
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy