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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
पढे तो वह उसी के अनुसार पांचवे मकान में चला गया। जब उसने अत्यधिक रूपवती कन्या को देखा तो वह विस्मय करने लगा
को पाह सुर्ग अपछरा कोह, नाग कुमारि परतषि होइ । बम देवी लिष्ट इह पानि,भवसक्त ममि भयो गुमिान ।।५५।।
कन्या द्वारा भविष्य दत्त का बहुत सम्मान किया गया और विविध प्रकार के व्यंजन भोजन के लिए तैयार किये गये और अन्त में उस नगरी के उजड़ने का कारण भी उसने बतलाया और कहा कि इस नगर का राजा यशोधन था। भवदत्त उसके पिता थे जो नगर सेठ थे । माता का नाम मदनवेगा था। उसकी वही पुत्री का नाम नागश्री एवं छोटी का नाम था भविष्यानुरूपा, जो मैं हुं । उसने कहा कि एक व्यंतर ने सारे नगर को उजाडा । पता नहीं उसने उसे कैसे छोड़ दिया। विष्यदत्त ने अपना नतान्त भी भविष्यानुरूपा से निम्न प्रकार कहा
भरत क्षेत्र कुर जांगल देस, हथिरणापुर भूपाल नरेस । धनपति सेठि यसो तहि हाम, तासु तीया कमलश्री नाम । भविसवत हों तहि को बाल, सुख में जातन जाणे काल ।
जो मात सरूपरिण पुन, पंडिस नाम वियो बंधुदत्त । मोहण पूरि दीप ने चल्यो, हो परिण सानि तास को मिल्यो सी पापी मति दीगो भयो, मदन दीप मुझे छाडि वि गयो कर्म जोग पदरण पावियो, इहि विषि तुम थानक अइयो ।।११।।
एक दूसरे का परिचय होने के पश्चात् जब भविष्यानुरूपा ने भविष्पदत्त से उसे स्त्री के रूप में अंगीगार करने के लिये कहा तो भविष्यदत्त ने बिना किसी के दी हुई वस्तु को लेने में असर्थता प्रगट की तथा कहा कि यदि वह व्यंतर देव उसे सौंप देगा तो उसको स्वीकार करने में कोई प्रापत्ति नहीं होगी। कुछ समय पश्चात् वहां व्यंतर देव प्राया और एक मनुष्य को देख कर अत्यधिक क्रोधित हो गया । लेकिन भविष्यदत्त ने उसे लडने के लिए ललकारा । अन्त में जब उसे मालूम पड़ा कि वह उसी का पूर्व भव का मित्र है तो वह उसका घनिष्ठ मित्र बन गया । व्यन्तर देव ने भविष्यानुरूपा का विवाह उसके साथ कर दिया और भविष्दत्त को मदनद्वीप का राज्य सौंप कर वहां से चला गया। भविष्यदत्त एवं भविष्यानुरूप यहां पर सुख से रहने लगे।
उधर भविष्यदत्त के वियोग में उसकी माता कमलश्री चिन्तित रहने लगी। एक दिन वह प्रायिका के पास गयी और अपने पुत्र के बारे में जानना चाहा ।