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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
श्रीपाल को यह अन्तरा आता है तथा छन्द की प्रत्येक पंक्ति में 'हो' शब्द का प्रयोग हुआ है जो भी छन्द का सस्वर पाठ करने में काम आता है ।
भविष्यदत्त चौपई
भविष्यदत्त का जीवन जैन कवियों के लिये अत्यधिक प्रिय रहा है। प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं हिन्दी सभी में भविष्यदत्त के जीवन पर अनेक रचनाएं मिलती है । हिन्दी में उपलब्ध होने वाली कृतियों में ब्रह्म जिनदास, विद्याभूषणा एवं ब्रह्म रायमल्ल की कृतियाँ उल्लेखनीय है । ब्रह्म रायमल्ल की यह कृति संवत् १६३३ की रचना है जिसे उसने सांगानेर नगर में महाराजा भगवन्तदास के शासन में सम्पूर्ण की थी । कवि ने अपनी कृति को कहीं पर रास, कहीं पर कथा और कहीं चौपई नाम से सम्बोधित किया है ।
भविष्यदत्त पपई कवि की महत्वपूर्ण कृति है । कथा का प्रारम्भ मंगलाघर से हुआ है । भरत क्षेत्र में करूजांगल देश और उसी में हस्तिनापुर नगर था । तीर्थंकरों के कल्याणक होने के कारण वहां सभी समृद्ध थे। चारों और शान्ति एवं श्रानन्द व्याप्त था । उसी नगर में धनबइ सेठ रहता था। उसका विवाह उसी नगर के दूसरे सेठ धनश्री की पुत्री कमलश्री के साथ हुआ। एक दिन उसी नगर में एक मुनि का आगमन हुआ । धनवई सेठ ने मुनिश्री से सन्तान के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उसके मूवोग्य पुत्र होगा जो अन्त में मुनि दीक्षा धारण करेगा । कुछ समय पश्चात् कमलश्री ने पुत्र को जन्म दिया । पुत्र जन्म पर विविध उत्सव किये गये तथा स्वयं नगर के राजा ने आकर सेठ को बधाई दी। सेठ ने भी दिल खोल कर नृत्य खर्च किया | बालक का नाम भविष्यदत्त रखा गया । सात वर्ष का होने पर उसे पढ़ने बिठा दिया गया -
बालक बरस सात को भयो, पंडित आगे पढो दियो । कीया महोछा जिरवरि ध्यानि, सजन जन बहु दीन्हा दान ।
कुछ समय पण्चात् सेठ धनवइ को अकस्मात् कमलश्री मेघा हो गयी और उसने तत्काल अपने घर से चले जाने को कह दिया। कमलधी ने बहुत प्रार्थना की लेकिन सेठ ने एक भी नहीं सुनी और अन्त में वह अपने पिता के पास गयी । कमली के अचानक घर आने पर उसके माता-पिता को उसके चरित्र पर सन्देह लगा इतने में धननद के मन्त्री ने व्याकर सबका भ्रम दूर कर दिया । कमलभी अपने पिता के घर सुखचैन से रहने लगीं। धनवइ का दूसरा विवाह कमलश्री की छोटी बहिन रूपा से हो गया। विवाह बहुत ही उत्साह और ग्रानन्द के साथ हुआ ।