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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल श्रीपाल और गुणमाला सुख से वहीं रहने लगे। इतने में ही धवल सेठ का जहाज भी संयोग से उसी द्वीप में भा गया । राजा ने सेठ का बहुत आदर सत्कार किया तथा उसे राज्य सभा में आमन्त्रित करके उचित सम्मान किया । सेठ ने श्रीपाल को भी वहीं देखा । नुप्तरूप से श्रीपाल के बारे में जानकर सेठ उससे डर गया । और एक बार फिर उसे राजद्धार से निकालने की मुक्ति सोची । वह एक ड्रम को बुला कर राज्य सभा में श्रीपाल को अपना सम्बन्धी बतलाने को कहा । ड्रम और डूमनी सपरिवार राज्य सभा में प्राकर विविध खेल दिखाने लगे और श्रीपाल को भी अपने ही परिवार का सिद्ध करने में सफल हो गये । उमा पाखंड मोडियो हो रह्या सुभट ने कंठि लगाइ ।। १७८ ।। हो एक ड्रमडो उट्ठी रोई, मेरो सगौ भतीजो होइ । एक उमड़ी बोन हो इह मेरी पुत्री भरतार । बहुत दिवस थे पाइयो हो कामि तजि किम गयो गवार । पालि पोसि मोटा किया हो करी सडाइ भोजन जोग 1 समूा माझ लहुडर पडिख, हो साधौ प्रादे कर्म के जोग ॥ १० ॥ राजा धनपाल ने श्रीपाल को ड्रम का पुत्र मान कर उसे तत्काल सूली लगाने का आदेश दिया । श्रीपाल ने फिर अपने ऊपर प्रामी हुई विपत्ति देख कर शांत भाव से उसे सहने का निश्चय किया । उसे बुरे हाल में सूली पर ले जाया गया 1 रोती पीटती गुणमाला भी वहीं भा पहुंची और श्रीपाल से वास्तविक बात जाननी चहीं । श्रीपाल ने घवल सेठ के जहाज में बैठी हुई अपनी पत्नी रलमंजूषा से उसके बारे में पता लगाने को कहा । गुणमाला दोड़ती हुई उसके पास गई और श्रीपाल का जीवन वृतांत जान कर रत्नमंजूषा को साथ लेकर राजा के पास प्रायी। रत्नमंजूषा ने श्रीपाल के बारे में राजा से पूरा वृतांत कहा और उसके साहसिक कार्यों की पूरी जानकारी दी । तत्काल राजा ने जाकर श्रीपाल से क्षमा मांगी और फिर ससम्मान उसे नगर में घुमा कर राज्य दरबार में लाया गया। धवल सेठ को जाल रचने के अपराध में तत्काल वन्धन में डाल दिया और बहुत कुरा हाल किया। हो राजा किंफर पठाया घरणा, औरणो बंषि धवल सेठ तक्षणा वधि सेटि ले आइया हो मारत बार न सेका करें । मत वियो महु नासिका हो प्रौधों मुल पग ऊंचा करें ॥१६ लेकिन पुनः श्रीपाल ने रोठ को अपना धर्म पिता बतला कर उसे छुड़ा दिया। मह अपने साथियों से जाकर मिला । उसका अत्यधिक सम्मान किया गया। उन्हें सामूहिक भोजन कराया और पूरी तरह से उनका मातिथ्य किया। श्रीपाल के प्रत्यधिक
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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