________________
श्रीपाल रास
७
विनय को लेकर पवन से अपने जीवन को धिक्कारने लगा और इसी बीच वहीं उसकी मृत्यु हो गयी। यहां कवि ने फिर दृष्टान्तों द्वारा चरित्र हीनता को नरक घंध, अपयश एवं नीच गति का प्रमुख कारण बतलाया है ।
श्रीपाल अपनी दोनों पत्नियों के साथ सुख पूर्वक रहने लगा । दिनों को जाते देर नहीं लगती । कुछ समय पश्चात् वहां कुकरा देश से एक दूत पाया और श्रीपाल को यहाँ के राजा की पाठ कन्यानों के प्रश्नों का समाधान करने के पश्चात् विवाह करने के लिये निदेगन कियः ! श्रीपाल ने की बात स्वीकार करली और तत्काल कुकरण देश के लिये रवाना हो गया | वहां जाने पर श्रीपाल का खूब स्वागत किया गया और पाठ कन्याओं से उसकी मेंट करायी गयी । श्रीपाल से उनकी समस्यामों का समाधान करने के लिये निवेदन किया जिसे श्रीपाल ने सहर्ष स्वीकार कर लिया । पहिले सबसे बड़ी राज कुमारी ने इस प्रकार समस्या रखी
सुभग गौरि घोली बड़ी, हो कोडीभर सुरिण मेरो युधि ।
तोनि पवा भागे कहो, हो साहस जहां तहाँ हो सिडि। श्रीपाल ने इसका निम्न प्रकार समाधान किया
हो सुण्या वचन बोल वरवीर, सुगडु कुमारि चित्त करि धीर । सत्त सरीर हस्यों रहे हो चदै कर्म तेसो ही बुधि ।
उविम तउ न छोडि जे, हो साहस जहां तहां ही सिद्धि । सोमा देवी ने अपनी समस्मा इस प्रकार रखी
हो सोमा देवी को विधार कोण धर्म जगि तारणहार । सुरिण कोडी भड बोलिया हो ग्यारह प्रतिमा श्रावक सार ।
तेरह विधि प्रत मुनि तणा, हो कुण धर्म जगि तारण हार । एक राजकुमारी से पद का प्रश्न एवं श्रीपाल का उत्तर निम्न प्रकार था
हो संपव बोलो धचन सुमोठ्ठ, सो न सजे विरसा विट्छ । सिरीपाल उत्तर दियो, हो दोष मढाइ मध्य पडदछ ।
दुरी पराइ ना कहे हो सो नर तौब विरला वोट ।
इस प्रकार श्रीपाल ने पाठों राज कन्यामों के प्रश्नों का समाधान कर दिया। और फिर अत्यधिक हर्ष और उल्लास के मध्य आठों राजकन्याओं से उसका विवाह हो गया । श्रीपाल विविध सुख साधनों के मध्य रहने लगे। दिनों को जाते देर नहीं लगती और इस प्रकार बारह वर्ष व्यतीत होने को आने लगे । उसे वहां मनासुन्दरी