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श्रीपाल रास हो पातकुमार जब तब प्राइ, दीनौ प्रधिको पवन चलाइ । जल कोलोल बहू उच्छल हो चक्केसरि प्रति कोनौ कोप । प्रोहण फेरै चक्र ज्यों हो, अंधकार करियो पाटोप ।। १४२।। हो अंवा ताते छुड़के तेलि, मूत नासिका दोनो ठेलि । छेदन भेदन वुःख सहै हो मणिभद्र प्रायो तहि ठाउ ।
मार मार मुखि उच्चर हो, धवल सेठ मुखि सुहेडसाइ ॥१४३।।
धवल रोठ चारों ओर विपत्ति को देखकर तथा अमहाय वेदना झेल कर रत्नमंजूषा के चरणों में गिर पड़ा और उससे क्षमा मांगने लगा और अपने किये पर पश्चाताप करने लगा। रत्नमंजूषा को उस पर दया आ गयी और चक्रेश्वरी प्रादि देबियों से उसे छोड़ देने की प्रार्थना की।
उघर श्रीपाल ने समुद्र में गिरने के पश्चात् णमोकार मंत्र का स्मरण किया। कवि ने सामोकार मन्त्र की प्रभावना का भी वर्णन किया है। अनायास ही एक लकड़ी का बड़ा टुकड़ा उसके हाथ आ गया । श्रीपाल उस पर बैठ गया और समुद्र के किनारे जा लगा ! किनारे पर ही उस द्वीप के राजा के दो सेवक थीपाल की ही प्रतीक्षा कर रहे थे। उस द्वीप का नाम या 'दलवणपदण' तथा शासक का नाम धनपाल था । गुणमाला उसकी पुत्री थी । राजा ने जन्न एक बार मुनि से उसके विवाह की चर्चा की तो मुनि ने भविष्यवाणी की थी कि श्रीपाल इस समुद्र को तैर कर भावेगा और यही गुणमाला का पति होगा। सेवकों ने जाकर तत्काल राजा से निवेदन किया । धनपाल चिर अभिलाषित कुमार को पाकर अत्यधिक हर्णित हुआ
और किनारे पर पाकर श्रीपाल से मेंट की। श्रीपाल के स्वागत में बाजा बजने लगे तथा चारण विस्दावालो गाने लगे।
हो भयो हरष राजा धनपाल, गयो सामुही जहां सिरौपाल । नपा छाडिउ जुर्मासस्यौ, हो मेरी नफेरो नाद मिसाण ।
साहण सेना साखती हो चारण बोले विजा बखाए ।। ११२॥
धनपाल ने श्रीपाल को कंठ लगाया । कुशल क्षेम पूछी तया उसे हाथी पर बिठला कर 'दलपटण' नगर में प्रवेश किया । सत्काल विवाह मंगर मा उसमें श्रीपाल और गुणमाला का विवाह संपन्न हुमा । हज य ग
.. कितने ही गांव दिये -
हो भावरि सात किरिल बई भाकिम किया .... राजा पोतो डाइको हो
। . बेस ग्राम बीमा
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