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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल श्रीपाल' यह सुन कर जहाज के ऊपर बढ़ कर चारों ओर देखने लगा 1 धोखे मे उस धीमर ने रस्सी काट दो संत श्रीपाल समुद्र में गिर गया। चारों ओर दुख छा गया । रणामंजूषा विलाप करने लगी। उसने अपने सभी आभूषण छोड़ दिये तथा दिन रात आंसू बहाने लगी। .........""हो रण मंजूसा करे पुकार, सिर कूट होयो हसे हो कहगो कोडी भट भरतार ॥१३०11 कामान्य घवलसेक ने अपनी एक दूती को रत्नमंजूषा के पास भेज कर उसे फुसलाना चाहा । दुती ने सेठ के वैभव की बात कही तथा मनुष्य जन्म की सार्थकता "खाजे पीजे विलसीजे हो, अवर जनम की कही न जाइ" इन शब्दों में बतलायी । रत्नमंजुषा के शरीर में उस पतिता की बात सुन पसीना आ गया और उसकी निम्न शब्दों में भर्त्सना करके उसे अपने यहां से निकाल दिया हो सुरणी सुदरी कणि बात हो उपनो दुख पसीनो गात । कोय करिवि सा वीनों हो नरक थे बेगि जाहि प्रब रांग पाप वचन से भासिया हो इसा बोल थे होसी भांड ॥१३४।। इसके पश्चात् वह कामान्ध सेठ स्वयं उसके पास चला गया और कहने लगा हाप जोजि बीनती करें, हो हम उपरि करि क्या पसाउ काम अग्नि तनु बासीयो हो राहय बोस हमारो भाउ ।३१३५॥ रत्नमंजूषा ने सेठ को अनेकों युक्तियों से पतियत धर्म के बारे में कहा तथा दुश्चरित्र होने पर इस जन्म में ही नहीं दूसरे जन्म में भी जो नरक यातनाएं भोगनी पड़ती है उसके सम्बन्ध में कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किये । लेकिन घबल सेठ के एक भी बात समझ में नहीं प्रायी। उसने रस्नमंजुषा का हाथ पकड़ लिया । इतने में ही एक दैवी घटना घटी और रनमंजूषा के शील की रक्षार्थ जिनशासनदेव, ज्वाला मालिनी देवी, वायु कुमार और चकेश्वरी देवी वहां प्रगट होकर धवल सेठ की बुरी तरह दुर्गति की । हो ज्याला मालिणी देवी प्राइ, बौनी मोहरिण अग्नि लगाइ रोहिणी पौधों टंकियो हो विष्टा मुख में दीनी सि । लात घरका प्रति हरण, हो सांकल तौष गला मे मेलि ।।१४।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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