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________________ श्रीपाल रास हो मुनिवर बोले सुरग कुमारि, सिद्धचक गरी संसारि । fears व्रत तुम्ह करौ, हो भाठ दिवस पूज मन लाई । आठ द्रव्य ले निर्मला हो कोढि कलेस व्याधि सह जाइ ॥ ४६ ॥ सिद्धचक्र व्रत के महात्म्य से श्रीपाल एवं उनके साथियों का कोड रोग दूर हो गया और उसके पारीर की लावण्यता चारों ओर चमकने लगी। श्रीपाल ने निम्न व्रत अंगीकार किये— हो सिद्धच पूजा करि सार, द्वारा पेषण दान प्रहार पर्छ आप भोजन करें, हो पर कामिनी देखें निज मास 1 सत्य वचन खोले सदा, हो तरस जीउ को करें में घात ॥ ६० ॥ हो द्रव्य परायो लेइ न जाग परिग्रह तो करे परमाश । करे व्रत भावना हो, गुणव्रत तीन्यो पाले सार । ४१ कोढ दूर होने पर पहिले श्रीपाल की माता उधर था गयी। इसके पश्चाद एक दिन मैनासुन्दरी के पिता ने जब श्रीपाल के अतिशय सुन्दर शरीर युक्त देखा तो उसने भी कर्म के प्रभाव को स्वीकार किया। श्रीपाल का उसने बहुत सत्कार किया और अपना साधा राज्य भी देने के लिए प्रस्ताव किया लेकिन श्रीपाल ने उसे स्वीकार श्रीपाल को वर के घर रहना नहीं किया । वे दोनों वहीं रहने लगे 1 उचित नहीं लगा तो वह इसी चिता में चिन्तित रहने लगा । ग्रन्त में वह मैनासुन्दरी से १२ वर्ष की श्राज्ञा लेकर रत्नदीप जाने का निश्चय किया । श्रीपाल के साथ मैंना ने जाने की इच्छा प्रगट की तो उसने सोता का उदाहरण दिया जिसके कारण राम को अत्यधिक कष्ट उठाने पड़े थे - फल लागा जे राम ने हो साथि सिया में लोयां फिर 1 श्रीपाल अपनी मा के चरण छू कर विदेश यात्रा के लिये प्रस्थान किया । म्रगुच्छ तट पर साथ रत्नद्वीप जाने अनेक ग्राम, नगर वन एवं नदियों को पार करने के पश्चात् वह पहुंचा। उधर समुद्र तट पर धवल सेठ पांच सौ व्यापारियों के की तैयारी में था लेकिन उसके जहाज चल ही नहीं रहे थे। जब किमी निमित्त जानी मुनि से जहाज न चलने का कारण पूछा तो बतलाया गया कि जब तक बत्तीस लक्षणों से युक्त कोई युवक जहाज में नहीं बैठेगा ने अपने आदमियों को चारों श्रोर दौड़ाया। सेठ श्रीपाल को देख कर अतीव प्रसन्न हुआ श्रीपाल को लेकर धवल सेठ का जहाजी बेड़ा तब तक जहाज नहीं चलेगा । सेठ मार्ग में इन्हें श्रीपाल मिल गया । धवल और उसका खूब आदर सत्कार किया । रवाना हुया | जब वे प्राधी दूर ही पहुंचे थे कि बीच में उन्हें समुद्री चोर मिल गये और धवल सेड को बन्दी बना कर
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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