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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
माता पिता कन्या का जिसके साथ विवाह कर देते हैं, लड़की उसी को अपना पति मान लेती है तथा देह और छाया के समान अभिन्न होकर रहने लगती है।
कुल कम्या तहि ने बरं, कर स्नेह जिस देह रू छोह ।।२०।।
राजा पारपान को अपनी लड़की की गट बात अच्छी नहीं लगी उस समय तो उसने कुछ नहीं कहा लेकिन एक दिन जब वह वन क्रीडा को गया तो उसे वहां एक कोढी राजकुमार मिला जिसके साथ में ७०० कोही और थे । कवि ने कोढ़ियों का जो वर्णन किया है वह निम्न प्रकार है
हो वहरी योची कोड कुजाति, खसरो कर ते वा भाति । सील पपरी बोयरी, हो बगै बाउ जहि बैसे नाक । कोट मसूरिउ जाणि जे, हो बैठे गले जिम काक ||रास।।२५|| हो को उबर सेत सरीर, वाव कोठ अति दुःख गहीर । खुसम्बो पाल रहे नहीं हो, चांदी कोख उपज साल। गलत काँच अंगुलि चुवै, हो निकले हार उपर हाल ।
राजा ने उसी के साथ मैना सुन्दरी का विवाह कर दिया । कवि ने विवाह विधि का निम्न प्रकार वर्णन किया है
हो लगन महरत बेगि लिखाई घेवो मंरप सोभा लाह । वस्त्र पटवर तारिणयां, हो वर कन्या ने तेल यहोडि । सोल सिगार जु साजिया, हो बैठा बेदी अंचल जोडि ।।311 हो यांभरए भग व झणकार, कामिणी गागै गीत सुधार । भाट भणे विडवावली, हो वर कन्या देखे नप रूप ।।
मैना सुन्दरी ने बिना कुछ विरोध किये कोढी श्रीपाल को अपना पति स्वीकार कर लिया और उसी के साथ वन में रहने को चल दी। राजा ने श्रीपाल को दहेज में बहुत धन सम्पत्ति दासी दास के साथ रहने के लिये वन में भवन भी दिया । मैना सुन्दरी श्रीपाल के साथ रहने लगी । वह प्रतिदिन भगवान जिनेन्द्र की पूजा करती । एक दिन संयोग से उसी वन में एक निनन्थ साघु आये । मैनासुन्दरी एवं श्रीपाल ने उनकी खूब सेवा सुअषा की। मुनि ने श्रावक धर्म का वर्णन किया और जीवन में उसे उतारने पर जोर दिया । अन्त में मनासुन्दरी ने श्रीपाल की कोळ मुक्ति के बारे में पूछा । इस पर मुनिश्री ने अष्टान्हिका में आठ दिन व्रत करने एवं भगवान की पूजा करने को कहा