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________________ श्रीपाल रास ३६ - कवि ने काव्य के अन्त में २९६ छन्दों का उल्लेख किया है जबकि रास में २६८ छन्द हैं । सम्भवतः कवि ने अन्तिम दो छन्दों को रास काव्य की छन्द संख्या मैं नहीं लिया है 1 ___हो से प्रधिका छिनचे छंद, कधियण भण्या तासु मतिमंद । काव्य के अन्त में कवि ने अपनी काव्य निर्माण के प्रति अनभिज्ञता प्रकट करते हुये विद्वानों से श्रीपाल रास को पढ़ कर हंसी नहीं उडाने की प्रार्थना की है । पद अक्षर की सुधि नहीं, हो जैसी मति बोनी आकास । पंडिस कोई मति हसी, संसो मति कीनो परकास ||२६८।। रास भणी श्रीपाल को। कथा भाग श्रीपालरास चौबीस तीर्थ करों की स्तुति से प्रारम्भ होता है। उज्जयिनी नगरी के राजा पापपाल के दो पुत्रियां थी । बड़ी सुरसुन्दरी एवं छोटी मैनासुन्दरी श्री । राजा ने सुरसुन्दरी को सोमशर्मा की चटशाला में पढ़ने को भेजा। जहां उसने तर्कशास्त्र, पुराण, व्याकरण आदि ग्रन्थ पढ़े। छोटी लड़की यमघर नामक मुनि के पास पढ़ने लगी। जिससे मनासुन्दरी ने भेद विज्ञान का मर्म जाना । पुत्रियों के वयस्क होने पर राजा ने सुरसुन्दरी से अपनी इच्छानुसार राजा का नाम बतलाने को कहा जिससे उसके साथ उसका विवाह किया जा सके । सुरसुन्दरी ने नामछत्रपुर के राजा का नाम लिया और पहुपपाल ने सुरसुन्दरी का तत्काल उससे विवाह कर दिया । दहेज में राजा ने हाथी, घोड़े, वस्त्र, आभूषण, दासी दास आदि बहुत से दिये । अस्व हस्ती बहुदाइजो, हो वस्त्र पटम्बर बह आभर्ण 1 वासी वास दिया धणा, हो मणि माणिक जव्या सोवर्ण ॥१६॥ एक दिन मैनासुन्दरी जब प्रातः पूजा से निवृत्त होकर पिता के पास आयी तो राजा ने उससे भी अपनी इच्छित वर का नाम बताने को कहा । मैना सुन्दरी प्रारम्भ से ही धार्मिक विचारों की थी इसलिये उसने उत्तर दिया कि जैसा भाग्य में लिखा होगा वही पति मिलेगा। हो श्रापक लोग बस धनवंत, पूजा करै जनै अरहत । दान चारि सुभ सकतिस्यो, हो श्रावक व्रत पाले मनलाइ । पोसा सामादक सदा, हो मत मिथ्यात न लगता जाइ ।।२६७।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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