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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल जहाजों में भरे हुए सामान को लूट लिया । श्रीपाल से जब सबने की तो उसने धनुष-बाप लेकर लुटेरों का सामना किया और उन की। श्रीपाल को वीरता से धवल सेठ एवं उसके साथी अत्यधिक सेठ ने उसे अपना धर्मपुत्र बना लिया । ४२ मिल कर प्रार्थना पर विजय प्राप्त प्रभावित हुये और दोहडा - कोटपाल वरिणवर कह्यो, नाइ मु............नर । एता मित्र जुतो करों से होइ सवं संधार ॥। ६६ ।। श्रीपाल का जहाजी बेड़ा रत्नद्वीप पर था पहुंचा 1 सर्व प्रथम वह यहां के जिनमन्दिर के दर्शनार्थ गया। वहां सहस्त्रकुट चैत्यालय या । चन्द्रमशिकान्त की जहां प्रतिमाए थी। स्वर्ण के स्तम्भ थे । वेदी में पाच वर्ष की मणियां जड़ी हुई थी। होति कनक भ वविसि वप्पा हो पंच वर मरण वेदो जबिज । सिला सिंघासन सोभिती हो जागि विधाता प्रापण घडि ।। उस सहस्रकूट चैत्यालय के वज्र के कपाट थे लेकिन श्रीपाल के हाथ लगते ही ये खुल गये । श्रीपाल ने बड़ी भक्ति भाव से जिनेन्द्र भगवान के दर्शन किये। I भ्रष्ट द्रव्य से पूजा की और अपने श्रापको दर्शन करके धन्य समझा 1 भाव भगति जिरण दिया हो करि स्नान पहरे सुभ चीर । जिरा चरण पूजा करि हो भारी हाथ लइ भरि नीर ।। १०२ ।। हो जल चंदन प्रक्षत शुभ माल नेवज द्वीप धूप भरि धाल । नालिकेर फल बहु लिया हो पुहपांजलि रवि जोड्या हाथ । जिरगवर गुण भास्या घणा हो जे जे स्वामी त्रिभुवन नाथ । रत्नदीप के विद्याधर राजा के पास मन्दिर के कपाट खुलने के सचाचार पहुंचे तो वह तत्काल वहां आया और श्रीपाल को अपना परिचय देकर अपनी सर्वगुणसम्पन्न कन्या रत्नमंजूषा से विवाह करने की प्रार्थना की। विद्याधर ने किसी अवधिज्ञानी मुनि द्वारा वज्र के कपाट खुलने वाले के साथ अपनी पुत्री के विवाह की भविष्यवाणी की बात सुनी थी। उसने अपनी पुत्री को 'गुसलावण्य पुण्य की खाति कहा । तत्काल विवाह मंडप तैयार किया गया और सात फेरों के पश्चात् वह श्रीपाल की धर्मपत्नी हो गयी। साथ में उसे अपार दहेज भी प्राप्त हुआ । दे विचार डाइ हस्ती, घोड़ा कनक अपार ॥ ११० ॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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