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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल नमस्कार करि बौन जी बो, ईक माता अह भई गुराणी । विद्या बान बीयो घणौ जी, हो पुत्र जोगि सो काज बहाणी ॥११७। कंचनमाला ने तत्काल पांचसी पुत्रों को बुला कर प्रद्युम्न को मारने की सलाह दी तथा कालसंवर के सामने अपना यिरूप बनाकर प्रद्य म्न के द्वारा अपने शीलभंग के बारे में कहा । इस पर कालसंवर अत्यधिक क्रोधित होकर प्रधम्न को पकडना चाहा लेकिन प्रद्युम्न के सामने सेना नहीं टिक सकी तथा अपनी विधावल से कालसंबर को बांध लिया । इतने ही में वहां नारद ऋषि आ गये और उन्होंने कालसंवर से वास्तविक बात बतलाकर परस्पर के मनमुटाव को शान्त किया हो संबरि बाण आई नवि संघिउ, नागपाति स्पौ तंमण पंषित। कामदेव रिण जोसियो जी, हो तौलग मारव मुनिवर प्रायो ।।१२४।। नारद ने प्रद्य म्न से द्वारिका चलने को कहा । प्रद्य म्न ने द्वारिका जाने के पूर्व सर्व प्रथम कंचनमाला से क्षमा मांगी और कालसवर से प्राज्ञा लेकर विमान द्वारा नारद के साथ द्वारिका के लिए प्रस्थान किया । द्वारिका में प्रवेश करने के पूर्व प्रद्य म्न ने दुर्योधन से उसकी लड़की उदधिमाला को छीन ली था माया का घोड़ा बना कर भानुकुमार के द्वारा घुडसवारी करने पर उसे खूब छकाया तथा पटवा दिया प्रद्युम्न इस समय वृद्ध ब्राम्हण के घेश में थे। हो फेऱ्या बी घोडा घायुफा बोया, आडा उभी रासिया जी ।।१४२! प्रद्युम्न सत्यभामा के घर गया जहां भानुकुमार का विवाह था । वहां उसने वृद्ध ब्राम्हण का रूप बनाया विष रूपढौ भयोणी, हो छिटिक्या होठ निकस्था बंतो। मुहि हाथ डगमग कर जी, हो मंदो मंडप माहि हसंतों । प्रद्य म्न ने कहा कि ब्राम्हण को जो यदि भर पेट जिमाता है तो वह वांछित फल प्राप्त करता है । सत्यभामा ने यह सुनकर उसको बैठने को प्रासन दिया और थाल में भोजन परोस दिवा । प्रद्य म्न सारा का सारा भोजन खा गया और पानी भी खूब पी गया । फिर उसने मुह में हाथ डाल कर उल्टी कर दी जिससे सारा महल दुर्गन्ध से भर गया। इसके पश्चात् प्रद्य म्न ने ब्रम्हचारी का रूप धारण कर लिया। और अपनी माता रूक्मिणी के घर चला गया । माता से दुर्बलता एवं चिन्ता के समाचार पूछने पर रूक्मिणी ने पुत्र के वियोग के कारण होने वाली दया की बात कही । प्रद्युम्न मपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गया और माता के चरण 'हए ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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