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________________ हनुमन्त कथा इसी अवसर पर वहां कानसंवर का विमान पाया । प्रद्य म्न के ऊपर पाने पर जब विमान रुक गया तो नीचे उत्तर कर उसने शिला के नीचे से शिशु प्रद्य म्न को उठा लिया और अपनी रानी कंचनमाला को ले जाकर दे दिया। कालसंबर के पहले ही पांचसो पुष थे इरालिये उसने कहा हो जो पुत्र पांना सामो, हो सहमालकको कर प्रहारो। ते दुख जाईन में सहया जी, हो सुरिण बोलौ संबर नर नाही । कालसंवर प्रद्य म्न को मेघकूट दुर्ग पर ले गया जहां उसका राज्य था। वहां प्रद्य म्न की प्राप्ति पर अनेक उत्सव मनाये गये । उघर द्वारिका में शिशु प्रद्युम्न के हरण पर शोक छा गया। रुक्मिणी रोने पीटने लगी-- रुदन करै हरि कामिणी जी, हो घूर्ण सीस दुवै कर पोटे ।।७६॥ हो राजा जो भीखम तणी कुमारी, हो हिरे सिर कटे अति भारी । वोस जी खरी अराघणी जो, हो सुरपी बात किस्न के दिवाणि ।। मुख बोल हरि रालीयोजी, हो हाहाकार भयो असमाने ।।७७॥ इतने ही में नारद जी का द्वारिका प्रागमन हुआ 1 उनसे भी रुक्मिरगी ने रूदनपूर्वक प्रद्य म्न के अपहरण की चर्चा की। ऋषि ने रुक्मिणी को सान्त्वना देते हुये शीघ्र ही आकाश मार्ग से विदेह क्षेत्र में जाकर सीमन्वर तीर्थ कर से प्रद्युम्न हरण के बारे में जानने के लिये कहा 1 नारद ऋषि तत्काल वहां से उसी क्षेत्र में गये जहां सीमन्धर स्वामी का समवसरण लगा हुआ था । नारद ऋषि वन्दना करके समवसरण में बैठ गये । वहां सीमंधर स्वामी ने प्रद्युम्न के पूर्वभव, उनके अपहरण का कारण एवं वर्तमान में उसका निवास स्थान प्रादि के बारे में विस्तृत जानकारी दी । नारद जी ने पुनः द्वारिका में जाकर निम्न बातें कही हो रूपिरिणस्यो मुनि बात पयासी, हो सोलह वरष गया घरि आसी रीती सरवर जलि भरे जी, हो सका धन फुले असमानो । दूध चिर तुम्ह ग्रंचसा जी, हो तो जारणी सानी सह नागो ।। १०३|| उधर कालसंबर के यहां प्रच.म्न दिन प्रति बढने लगा । एक बार कालमंदर ने अपने पांच सौ पुत्रों को अपने शत्र राजा सिंध भूपति को पराजित करने के लिये भेजा लेकिन वे मफल नहीं हो सके । अन्त में पद्म म्न उनसे माजा मांग कर सिंघरथ को पराजित कराने के लिये गया और शीन ही उसे बांध कर कालसंवर के पास ले माया। इसके पश्चात् बह १६ गुफाओं में गया जहां से उसे कितनी ही सिद्धियां प्राप्त हुई । घर पर जाकर जब वह कंचनमाला से मिला तो वह उसके रूप को देख कर मोहित हो गयी और उससे दासना पूर्ति की बात करने लगी। अपनी तीन विधाएं' भी उसी को डाली । प्रद्य म्न ने कंचनमाला से विद्या तो लेली लेकिन वह उसे माता एवं गुराणि कह कर वहां से चल दिया।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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