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________________ ३० महाकवि ब्रह्म रायमल्ल हो नारद बोल हरी नरेसो, हो उसपुर बस असेसो । भीषम राजा राजई जी, हो तिहकै सुता कपिरली जाणों । सासु रूप लिखि आरिणयो जी, हो सोभे नाराईण के राणी १३३६।। भीषम राजा ने रुक्मिणी के विवाह की तैयारियां प्रारम्भ कर दी। लेकिन जब उसकी भुवा को मालूम पड़ा तो वह अत्यधिक चिन्तित हुई और पत्र के द्वारा श्रीकृष्ण जी को 2-1 भेज मि पा वापर परे समाचारोलिक रूप से कहे कि विवाह के दिन नागपूजने के बहाने से रुक्मिणी बाग में पावेगी सब यहां मेंट हो सकेगी । पूर्व निश्चयानुसार रुक्मिणी वहां प्रागयी और कहने लगी हो ताहि औसरि रूपरिण सहा आई, हो भाग देवता की पूज रचाई। हाय जोडि विनती करे जो हो, जे छ सकल देवता साचो । नाराहरण अब आइज्यो जी, हो फुरिज्यो सही तुहारी बाचो ॥४२।। रुक्मिणी हरण की नगर में जब खबर पहुंची तो युद्ध की तैयारी प्रारम्भ हो गयी हो कुंग्लपुर में लाधी सारो, ठाई ठाइव पडि पुकारो। कपिरिण न हरि ले गयो जी, हो रामा जी भषिम बाहर लागी । साठि सहस रथ जोतिया जी, हो तीनि लाख घोग सुर बागा ।।४५।। रुक्मिणी सेना देख कर डर गयी और कृष्ण जी से 'प्रब आगे क्या होगा' कहने लगी । लेकिन श्रीकृष्ण जी ने शीघ्र ही धनुष बाण चलाना प्रारम्भ कर दिया और सर्वप्रथम रूपकुमार को घराशायी कर दिया। शिशुपाल और श्रीकृष्ण में युद्ध होने लगा । और कृष्ण जी ने बाण से उसका भी सिर छेद दिया। उसके पश्चात् वे रूपकुमार को साथ में लेकर रंवत पर्वत पर चले गये वहां रुक्मिणी के साथ विवाह कर लिया । द्वारिका पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत किया गया । हो हलधर फिस्न द्वारिका प्राया, हो जित्याजी सम निसारण बजाया एक दिन कृष्ण ने अपना एक दूत दुर्योधन के पास भेजा और कहलवाया कि रुक्मिणी और सत्यभामा दोनों में से जिस किसी के प्रथम पुत्र होगा वह उसकी सुता उदघिमाला से विवाह करेगा। इधर सत्यभामा एवं रूक्मिणी में यह तय हुअा कि जो दोनों में से प्रथम पुत्र पैदा करेगी वह दुर्योधन की लडकी के साथ विवाह करने के पश्चात् दूसरी का सिर मुण्डन करेगी। नौ महिने के पश्चात् दोनों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लेकिन कृष्णजी के पास रूक्मिणी का दूत पहिले पहुंचा और सत्यभामा का दुत पीछे | पुत्र उत्पन्न होने पर द्वारिका में खूब उत्सव मनाये गये हो मनहारिका भयो उछाहो, घरि घरि गागै कामणी श्री ।।६७॥ जन्म के ६ दिन पश्चात् घूमकेतु नामक विद्याधर प्रद्य म्न को प्राकाश मार्ग से उड़ाकर ले गया और महाभयानक बन में एक सिला के नीचे दबा कर चला गया।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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