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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल हनुमान राम का शुभाशीर्वाद लेकर लंका के लिये रवाना हुये । मार्ग में दो मुनियों को संकट में देख कर उनका उपसर्ग शान्त किया। वहीं पर लंका सुन्दरी से विवाह किया और उसे सीता के सम्बन्ध में बात बतलायी । २६ हनुमान लंका में जाकर विभीषण से मिले। वहां उनका उचित स्वागत हुआ। हनुमान जहां सीता रहती थी वहां गये । हनुमान ने वहां सीता के दर्शन किये। सर्व प्रथम राम नाम की मुद्रिका को ऊपर से सीता के पास गिरा दी। मुद्रिका देख कर सोता प्रमन्न हुई। उधर रावण को भी मन्दोदरी ने बहुत समझाया । उसके पहले ही १८ हजार राशियाँ थी और वे भी एक से एक सुन्दर थी। सीता की भी मन्दोदरी ने निम्न शब्दों में प्रशंसा की— तुम्ह सम रूप नहीं को नारि संयम संम्ल वरत आचार । धमि पिता माता मिहि जरणी, धनि रामचन्द्र तस कामिनी ||३६| हनुमान ने सीता से राम के समाचार कट्टे तथा सीता को छुडाने का रामचन्द्र का निश्चय घोषित किया। हनुमान एवं सीता ने एक दूसरे की बात पूछी तथा किस तरह सीला का हरण किया गया वह बतलाया । सुग्रीव का राम से जाकर मिलना तथा उन्हें अपनी राजधानी में लाकर ढहाने की बात कही । उधर मन्दोदरी ने हनुमान के आने की बात रावण से कही तो उसने तत्काल उसे बांध कर लाने का आदेश दिया। हनुमान ने सबका सामना किया। रावण ने अपने पुत्र इन्द्रजीत को हनुमान को बांध कर खाने के लिये भेजा । अन्त में इन्द्रजीत हनुमान को रावण के पास ले जाने में सफल हो गया। रावण ने हनुमान को बहुत समझाया, संसार का स्वरूप बतलाया, लेकिन रावण ने एक भी नहीं सुनी। हनुमान से अपने मरण की बात बतलायी और पूछ के कपड़ा रूई श्रादि बांधने तथा उस पर तेल डालने के लिये कहा। हनुमान ने तत्काल अपनी पूंछ चारों और घुमा दी जिससे लंका जलने लगी । इसके पश्चात् हनुमान वापिस राम के पास आ गये। राम ने हनुमान का राजसी स्वागत किया । वापिस आने के पश्चात् हनुमान ने लंका का पूरा वृत्तान्त सुनाया । इसके पश्चात् राम ने लंका विजय के लिये सेना तैयार की और वे लंका विजय के लिये चल पड़े। इसके पहले कि वे रावण पर आक्रमण करते उन्होंने रावण को समझाने के लिये अपना दूत भेजा लेकिन रावण ने दूत की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा उसके नाक कान काटने का आदेश दिया 1 अन्त में राम को लंका पर आक्रमण करना पड़ा। दोनों की सेनाओं में घोर युद्ध हुआ और अन्त में लक्ष्मण के हाथ से रावण का अन्त हुआ। सीता को लेकर राम वापिस अयोध्या लौट आये । हनुमान कुंडलपुर पर राज्य करने लगे । बहुत
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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