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हनुमन्त कथा
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सभी उसे खोजते वहां आ गये और पवनंजय को अंजना मिलने की खुशखबरी सुनायी । कुछ समय पश्चात् पवन कुमार उसको साथ लेकर वापिस प्रादितपुर चला गया और वहां सुख पूर्वक राज्य करने लगा।
___ बहुत वर्षों पश्वात् रावण का फिर संदेश लेकर दूत पाया और शीघ्र ही सेना लेकर वरुण को पराजित करने का आदेश दिया । हनुमान ने अपने पिता के साथ जाने का प्रस्ताव रखा । लेकिन पिता ने बालक हनुमान को युद्ध की भयानकता के बारे में बतलाया लेकिन उसने एक भी नहीं सुनी। अन्त में पिता ने उसे सम्मान के साथ विदा किया। हनुमान को नगर से निकलते ही शुभ शकुन हुये । कवि ने उन्हें निम्न शब्दों में गिनाया है
भये सुगरण सभ चालत बार, बाई वेष्या कर घोकार बाबो तीतर बाई माल, माई सारस सांड सियाल ।।११॥ बाबो घुघ घमं घणों, देहि मान राषरण घति घणों। भावो सुणहो ठोके कंध, बेगौ करे शत्रु को बंध ॥१२॥ मा सिध कर दोकार, मात्र रासभ वारंवार ।
आडी फिरि आई लौंगती, यांचे शत्रु हण सूपति ॥१३।।
हनुमान ने वरुण की सेना को सहज ही परास्त कर दिया। इससे चारों मोर उसकी जय जय कार होने लगी। एक दिन हनुमान अपने दीवान के साथ बैठे हुये थे। एक दूत ने हनुमान के हाथ में पत्र दिया जिसमें उनसे कोकिंदा के राजा सुग्रीव की अत्यधिक सुन्दर पुत्री पद्मावती के साथ विवाह करने की प्रार्थना की गई थी। कुछ समय पश्चात् खरदूषण के मरने एवं संवुक के पतन के समाचार सुनकर हनुमान को भी दुःख हुआ।
पर्याप्त समय के पश्चात् हनुमान के पास पत्र लेकर फिर एक दूत प्रामा पप में निम्न पंक्तियां थी
दूमा दिन आयो एक बूत, लिल्यो लेख बोनौ हनुवंत । सीता हरण कही सहु मात, राम लखमन को कुशलात ।।५।। रामचन्द्र कीन्हीं उपगार, सह सुग्रीव सण्यो व्योहार ।
राम च.आई आइ सुतार, सुरणी सहु से बात विधार ॥६॥
पत्र को पढ़ कर हनुमान शीघ्र ही राम के पास गये। राम ने हनुमान का स्वागत किण और सीता हरण की बात बतलायी तथा लत्काल लंका में जाकर सीता से मिलकर निम्न संदेश देने के लिये कहा
कहि नै सिया छ डा तोहि, सफल जन्म तब मेरउ होई लिया गये सो जो मावि करे, तास भार धरती पर रहे ॥२५॥