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________________ २४ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल विश्वास नहीं किया और अंजना को देश निकाला दे दिया। होनहार ऐसा ही था । कवि ने ऐसी घटनाओं पर अपनी बहुत सुन्दर टिप्पणी दी है जा दिन भाई आपना ता दिन प्रोत म कोइ । माता पिता, कटुंब सहु ते फिरि मेरो होइ । कंत सासु सुसरी पिता, रथ दल अधिक अनूप । सुन्वरी निकली एकली, यो संसार सप ॥२७॥ अपने पिता की नगरी से अंजना अपनी एक दासी के साथ भयंकर वन में पहुंची। उसी वन में उसे एक मुनि के दर्शन हुए जिससे उसको बहुत कुछ सांत्वना मिली । उसने रामोकार मन्त्र का उच्चारण किया। मुनि ने भी उन्हें उपदेश दिया और विपत्ती में धैर्य धारण करने के लिये कहा। मुनि से अंजना ने अपनी विपत्ति अपने पूर्व संचित पाप कर्मों का फल जानने के पश्चात् रहने लगी। वहीं एक रात्रि को गुफा में अंजना ने पुत्र को का कारण पूछा । अंजना ने बहू और उसकी दासी वन जन्म दिया। में गुफा मध्य प्रति भयो उजास जागकि दिणयर कियो प्रकास । रूप कला गुण है न पार, परत षिकाम अवतार ॥७६॥ fare कोटि दिधै तस बेह, सोल कला चन्द्र मुख एव । तेजा पुरंग बोजे वर बोर, महावा तसु खभं सरीर ॥ ५०॥ उसी गुफा के ऊपर से एक विद्याधर विमान द्वारा सपत्नीक जा रहा था जब उसे मालूम हुआ तो वह गुफा में जाकर अंजना एवं नवजात शिशु के सम्बन्ध में कि वह तो उसका मामा ही है, बालक का जन्मोत्सव मनाया । जानना चाहा । दासी द्वारा जब बात मालुम हुई वह तत्काल अंजना को अपने साथ ले गया और ज्योतिषी ने जन्म कुंडली बनायी और कहा कि यह बालक अपूर्व तेजस्वी होगा तथा अन्त में निर्वाण प्राप्त करेगा । मामा के विमान में पांचों बैठ कर चल दिये। बालक मामा के हाथ में था । विमान ऊपर चला जा रहा था कि मामा के हाथ से छूट कर बह नीचे गिर पड़ा । अंजना पर फिर विपत्ति श्रा गयी। नीचे जब विमान को उतारा तो देखा बालक प्रसन्न होकर अंगूठा चूल रहा है। पंजना की प्रसन्नता का पार नहीं रहा अन्त में वे सब अपने घर आ गये। अंजना अपने मामा के घर रहने लगी । इधर पवनकुमार रावण से सम्मानित होने के पश्चात् वापिस अपने देश लौट आमा । वहां आने पर जब उसे भंजना नहीं मिली तो वह तत्काल अपने साथी के साथ राजा महेन्द्र के यहां गया। जब वहां भी उसे अंजना नहीं मिली तो वह उसके विरह में उन्मत्त होकर चारों ओर वन, पर्वत एवं गुफाओं में उसकी तलाश करने लगा । लेकिन फिर भी उसे अंजना नहीं मिली । अन्त में उसके पिता श्वसुर प्रादि
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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