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________________ २० महाकवि ब्रह्म रायमल्ल प्राकृतिक उपद्रवों की भयंकरता पर प्रकाश डाला एवं विविध प्रकार से अनुनय विनय क्रिया अहो सा जो बारह मास कुमार, रिति रित भोग की प्रतिसार । माता जन्म की को गिर, अहो घर मे जी नाज खावाज जो हो । पारि करि मरौ स्वामी सुवा ये लाकडी बेई न कोई ||१७|| नेमिनाथ ने राजुल की वेदना बड़े ध्यान से सुनी लेकिन वे उससे जरा भी प्रभावित नहीं हुये। उन्होंने संसार की प्रसारता, मनुष्य जीवन का महत्व, जगत् के पारवारिक सम्बन्धों के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला तथा वैराग्य लेने के निश्चय को दोहराया। राजुल नेमिनाथ की बातों से प्रभावित तो हुई लेकिन उसने स्त्रीगत भावों का फिर प्रदर्शन किया 1 लेकिन नेमिनाथ को वह प्रभावित नहीं कर सकी । नेमिनाथ की माता शिवादेवी भी वहीं मा गयी और उन्हें घर चल कर राज्य सम्पदा भोगने के लिये अपना अनुनय किया । अहो माता सिवदेवि जो नेमि नं दे उपदेसि पुत्र सुकमाल तुहु बालक बेस 1 बिन इस घर में जी थिति करौ ग्रहो सुखस्यो की भोगवी पिता को राज ! दिया हो लेग वेला नहि स्वामि धर्य हो श्राश्रमि आतमा काज ॥। ११४।। माता शिवादेवी एवं नेमिनाथ में खूब वाद विवाद हुआ। माता ने विविध दृष्टान्तों से राज्य सम्पदा के सुख भोगने की बात कही जबकि नेमिनाथ जगत् के सुखों की प्रसारता के बारे में हृष्टान्त दिये । माता पिता के पचात् बलभद्र, श्रीकृष्णजी एवं अन्य परिवार के मुखिया नेमिनाथ को समझाने आये लेकिन नेमिनाथ ने वैराग्य लेने का दृढ़ निश्चय प्रकट किया और अन्त में सावन शुक्ला ६ को वैराग्य ले लिया तत्काल स्वर्ग से इन्द्रों । ने श्राकर नेमिनाथ के चरणों की पूजा, भक्ति एवं वन्दना की। राजुल ने भी वैराग्य लेने का निश्चय किया और अपने आभूषण एवं वस्त्रालंकार उतार दिये तथा उसने आयिका की दीक्षा ले ली। वह विविध व्रतों एवं तप में लीन रहती हुई अन्त में मर कर १६ वें स्वर्ग में इन्द्र हो गयी । नेमिनाथ ने कैवल्य प्राप्त किया और देश में सैकड़ों वर्षो तक विहार करके तथा अहिसा अनेकान्त एवं अन्य सिद्धान्तों का उपदेश देकर देश में अहिंसा धर्म का प्रचार किया और अन्त में गिरनार से ही मुक्ति प्राप्त की । प्रस्तुत काव्य ब्रह्म रायमल्ल की प्रथम कृति । इसे कवि ने संवत् १६१५ सावन कृष्णा १३ बुधवार के शुभ दिन समाप्त किया था । नेमीश्वररास की रचना झुझुनुं नगर में हुई श्री जहाँ चारों ओर बाग बगीचे थे। महाजन लोग जहां पर्याप्त
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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