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________________ नेमिश्वररास दूसरे दिन लग्न की तिथि भायी तो नेमिकुमार अपने परिजनों के साथ तोरण के लिये पहुंचे। उनके स्वागत में महिलाओं ने मंगल गीत गाये । राजुल ने भी अपना पूरा शृंगार किया। प्रहो मंदिर राजल करो जो सिंगार, सोहै जी गली रत्नांड्यौ हार । नासिका मोती जी अति बण्या, अहो पाई नेवर महा सिरहा मैह-मंद काना हो कुल प्रति मला, महो मेरू दुहुँ विसो जिम सूर पर चंर । नैमिकुमार जट का द्वार पर पहुई में उन्हें एक स्थान से अनेक पशुणों की करुण पुकार सुनाई दी। उनकी पुकार सुन कर वे चुपचाग नहीं रह सके और उसका कारण पूछा । जब नेमिकुमार को मालूम पड़ा कि ये पशु उन्हीं की बरात में पाये हुये बरातियों के लिये हैं तो वे चिन्तित हो उठे और सपत्ति को पाप का मूल जान कर विवाह के स्थान पर वैराग्म लेने को अधिक उचित समझा और कंकन सोड कर गिरनार पर्वत पर चढ़ गये-- स्वामी जीव पसू सह शेना जी छोडि, चाल्यो जी फेरि तप नै रष मोहि। काध जी सुराह लोधी पालिकी, अहो जै जै कार भयो असमान । सुरपति विनों जी गोले घरणों, स्थामि बाह बढ्यो गिरनारि गढ़ पानि ।।७३।। क्योंकि जहां जीव दया नहीं है वहां सब बेकार हैजप तप संजम पाठ-सह, पूजा विधि व्योहार । जीव दया विरण सह प्रफल, ज्यो दुरजन उपगार । लेकिन जब राजुल ने नेमिकुमार द्वारा वैराग्य घाररण करने की बात सुनी तो वह मूर्छित होकर गिर पड़ी अहो गइ जी बचन मुरगता मुरछाई, काटि जी अलि बसौं कुमलाई । नाटिका थानक छाडिया, अहो मात पिता जब लाघो जी सार । रूवन करौ प्रति सिर धुणे, अहो कीनर जी सीतल उपचार ॥७५।। जब राजुल के माता पिता ने उसका दूसरे कुमार के साथ विवाह करने की बात कही तो राजुल ने उसे भारतीय संस्कृति के विरुद्ध बतलामा तथा नेमिकुमार के अतिरिक्त सभी को अपने पिता एवं भाई के समान मानने का अपना निश्चय प्रकट किया। वह अपनी एक सहेली को लेकर गिरनार पर्वत पर गयी जहां नेमिनाथ मुनि दीक्षा धारण कर तपस्या में लीन हो गये थे । राजुल ने नेमिनाथ से वापिस घर चलने को कहा, अपने सौन्दर्य की प्रशंसा की । विभिन्न १२ महिलों में होने वाले
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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