SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूस्वामी रास ३५५ जिहाँ पछिए क्षयक सम्मकत्व, अमाहारक जिहां महिए । पंचतालीसए योजन लाख, स्थानिक पांम्यु से मचित ।।८।।६६१॥ महोछव ए कीउ निर्माण, देवे मिली मननी रलीए । गया सहए निज निज ठाम, संस्कारी काया बलीए ॥६॥६६।। दुहा-पहंदास मुनि तप फरी, छठा स्वर्ग मझार । इंद्र तगी पदवी लही, भोगवि सोक्ष अपार ॥१॥६६३।। स्त्री लिंग छेवी जिनमती तपह तगी परभाव । ब्रह्मोत्तर पत्त'द्र हूउ, भोगवि सोक्ष स्वभाव ।।२।।६६४।। वासपूज्य चंपापूरी, तिहाँ बई च्यारि नारी । तपसयम अादरी, ध्यान धरा भवतार ।।३।६६५।। सन्यासि काला करी, स्त्री लिग छेदी हेव । स्वर्ग महद्धिक देवता, अवतरीया तत खेद ।।४।६६६।। विधुच्चर मुनि तप करी, सही परीसह भार । काल करी सर्वार्थसिद्धि, प्रवतरीउ भवतार ॥५॥६६७।। सेत्रीस सागर पायुपु', प्रामी मन उल्लास । मध्य लोक बली प्रवतरी, हिसि मुक्ति निवास ॥६॥६६८।। प्रशस्ति काष्ट संघ जगि जाणीइ, नंदीयड गड मझार | रामसेन मुनिवर हुमा, गछ तणा सणगार ॥७॥६६६11 तेह अनुक्रमि मुनिवर हुअा, सोमकीति मुविचार । ज्ञान विज्ञान प्रागला, सास्त्र तणा भण्डार ।।८।।१७। ससु पट्टि प्रति रूपहा, विजयसेन जयवंत । तप जप यानि मंडीया, मावंत गुणवंस ॥६७११॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy