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जम्बूस्वामी रास
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जिहाँ पछिए क्षयक सम्मकत्व, अमाहारक जिहां महिए । पंचतालीसए योजन लाख, स्थानिक पांम्यु से मचित ।।८।।६६१॥
महोछव ए कीउ निर्माण, देवे मिली मननी रलीए । गया सहए निज निज ठाम, संस्कारी काया बलीए ॥६॥६६।।
दुहा-पहंदास मुनि तप फरी, छठा स्वर्ग मझार ।
इंद्र तगी पदवी लही, भोगवि सोक्ष अपार ॥१॥६६३।। स्त्री लिंग छेवी जिनमती तपह तगी परभाव । ब्रह्मोत्तर पत्त'द्र हूउ, भोगवि सोक्ष स्वभाव ।।२।।६६४।।
वासपूज्य चंपापूरी, तिहाँ बई च्यारि नारी । तपसयम अादरी, ध्यान धरा भवतार ।।३।६६५।।
सन्यासि काला करी, स्त्री लिग छेदी हेव । स्वर्ग महद्धिक देवता, अवतरीया तत खेद ।।४।६६६।।
विधुच्चर मुनि तप करी, सही परीसह भार । काल करी सर्वार्थसिद्धि, प्रवतरीउ भवतार ॥५॥६६७।।
सेत्रीस सागर पायुपु', प्रामी मन उल्लास । मध्य लोक बली प्रवतरी, हिसि मुक्ति निवास ॥६॥६६८।।
प्रशस्ति
काष्ट संघ जगि जाणीइ, नंदीयड गड मझार | रामसेन मुनिवर हुमा, गछ तणा सणगार ॥७॥६६६11
तेह अनुक्रमि मुनिवर हुअा, सोमकीति मुविचार । ज्ञान विज्ञान प्रागला, सास्त्र तणा भण्डार ।।८।।१७।
ससु पट्टि प्रति रूपहा, विजयसेन जयवंत । तप जप यानि मंडीया, मावंत गुणवंस ॥६७११॥