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________________ नेभिश्वररास १७ तीर्थंकर का नाम निकुमार रखा गया इस सम्बन्ध में कवि के निम्न प लिखा है अहो वा की सुइस्यो जो छेदिया कान, वस्त्र आभरण विने बनुमान । महो किया जी महोखा प्रतिषरणा, वंदना भक्ति करि वारं जी वार ॥ हो कर जोडे सुरपति सरणी नाम दिये तसु नैमिकुमार ||२८|| नेमिकार दोज के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगे । सुख एवं ऐश्वर्य में समय जाते देर नहीं लगती । नेमिकुमार कब युवा हो गये इसका किसी को पता भी नहीं चला। एक दिन श्रीकृष्णा वन क्रीड़ा को जाने लगे तो नेमकुमार उनके साथ हो गये । अनेक यादव कुमार भी साथ में थे तथा वे सभी हाथी रथ एवं पालकी में सवार थे। यही नहीं ग्रन्तःपुर का पूरा परिवार साथ में था । बे वन में विविध प्रकार की कीड़ा में मस्त हो गये। एक युवती झूला झूलने लगी तो दूसरी हाथ में डण्डा लेकर उसे मारने लगी। एक युवती यह देख कर खिलखिलाकर हंसने लगी तो दूसरी अपने पति का नाम लिखने में ही मस्त हो गयी । एक तीया भुल भुलगा, एक सखी हाँ साट से हाथि । एक सखी हा हा करें, ग्रहो एक सखी लिहि कंत कौलाव ।। वहीं पर एक विशाल एवं गहरी बावड़ी थी। वह गंगा के समान निर्मल पानी से ओत-प्रोत थी । नेमिकुमार ने उस बावड़ी में खूब स्नान किया। जब वे स्नान करके बावड़ी से बाहर निकले तो अपना दुपट्टा डाल दिया तथा अपनी भावज जामवती से उसे शीघ्र धोने का निवेदन किया। जामवती को वह अच्छा नहीं लगा और कहा कि यदि नारायण श्रीकृष्ण ऐसी बात सुन लें तो तुम्हें नगर से बाहर निकाल दें। नारायण के पास शंख एव धनुष जैसे शस्त्र है तथा नाग या पर वे सोते हैं । यदि तुम्हारे में भी बल हो, तथा इनको प्राप्त कर सको तो वह उनके कपड़े धो सकती हैं। नेमिकुमार को जामवती की बात अच्छी नहीं लगी । वन क्रीडा से लौटने के पश्चात् नेमि नारायण के घर गये और वहां उनका शंखपूर दिया। शंखपूरने से तीनों लोकों में खलबली मच गयी । नेमिकुमार ने नारायण के धनुष को भी चढा दिया। वहीं श्रीकृष्णजी आ गये । वे भोधित होकर नेमिकुमार को डाटने लगे। दोनों में मल्ल युद्ध होने लगा । लेकिन श्रीकृष्ण इन्हें नहीं हरा सके । P नारायण ने समुद्र विजय के घर प्राकर शिवादेवी के चर्ण स्पर्श किये तथा कहा कि नेमिकुमार युवा हो गये हैं इसलिये शीघ्र ही उनका विवाह करना चाहिये तथा यह भी कहा कि उग्रसेन की पुत्री नेमिकुमार के योग्य कन्या है । माता ने श्रीकृष्ण के कहने पर अपनी स्वीकृति दे दी। इसके पश्चाद नारायण ने सजा उग्रसेन के समक्ष राजुल के विवाह का प्रस्ताव रखा। उनसेन ने माना कि घर पर बैठे गंगा
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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