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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
उक्त सभी रचनाएँ हिन्दी की बहुमूल्य कृतियाँ है तथा भाषा, शली एवं विषय वर्णन आदि सभी दृष्टियों में उल्लेखनीय है । इन कृतियों का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है
१. नेमीश्वररास
यह कषि की उपलब्ध कृतियों में प्रथम कृति है । काव्य रचना में प्रवेश करने के साथ ही कवि ने नेमिनाथ स्वामी के जीवन पर रास काव्य सिख कर उन्हीं के चरणों में उसे समर्पित किया है। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि कवि नेमिनाथ के अत्यधिक भक्त थे । कवि को उस समय भायु क्या होगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । वैसे कवि का साहित्यिक जीवन संवत् १६१० से १६४० तक का रहा है । वे अपने पूरे साहित्यिक जीवन में ब्रह्मचारी ही रहे और प्रत्येक काव्य के अन्त में उन्होंने अपने पापको प्रनन्तकीति के शिष्य के रूप में प्रस्तुत किया। अनन्तकीति मूलसंघ भट्टारक परम्परा में मुनि थे और उन्हीं के शिष्य थे कवियर रायमल्ल जिन्होंने अपने गुरू का प्रस्तुत काग्य में उल्लेख किया है।
नेमीश्वररास राजस्थानी भाषा की कृति है । इसमें नेमिनाय का जीवन चरित अंकित है। नेमिनाय २२ वें तीर्थकर थे और भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे । नेमिनाथ को ऐतिहासिक महापुरुष घोषित करने की पोर खोज जारी है । नेमि यदुवंशी राजकुमार थे जिनके पिता समुद्रविजय थे। उनकी माता का नाम शिवादेवी वा । एक रात्रि को माता ने सोलह स्वप्नों देखे । स्वप्नों का फल पूछने पर समुद्र विजय ने अपूर्व लक्षणों युक्त पुत्र होने की बात कही । कार्तिक शुक्ला ६ को देवों ने मिलकर गर्म कल्याणक मनाया ।
श्रावण शुक्ला अष्टमी के दिन तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म हुआ। नगर में विभिन्न उत्सव मनाये गये । पारती उतारी गयी और मौतियों का चौक मांडा गया । स्वर्ग लोक के इन्द्र देव देवियों के साथ नगर में पाये और बाल तीर्थंकर को सुमेर पर्वत पर ले जाकर पाण्डक शिला पर अभिषेक किया । इन्द्र अपने एक हजार पाठ कलशों से जल भर कर नेमिकुमार का अभिषेक किया । दूध-दही, घृत एवं रस के साथ औषधियों से मिले हुये जल से भगवान का न्हवरण किया ।
साहस अठोतर इन के हायि, प्रवर भरि लीया जो देवतां साथि । जा हो जीऊ परि बसिया, अहो दुध वही धूत रस कोजी धार । सार सुगंधी जी ऊषधी, ग्रहो न्हवरण भयो शिव देवकुमार ।।२।।