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जम्बूस्वामी रास
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महा उरग मणि कुण ग्रहि कुण काल मुख पिसोनी सरिए । मद पूरमउ गज कुण घरि, कुण पुरष सिंह सायो संग्राम करिए ।।६।।६२० ।।
जिनधर्म पाक्षि सुन नहीं पापिय नरग माहि जीव दुख सहिए । मुझ छतां मृगांकज साहीम, देसन परमाहिं कुण रहिए ।।७॥६२१॥
खडग घरी मुझ प्रागलि कूण रहि गगन गति मुझ तुम्हो कहजए । कुमर बचन खगपति सुणी, गुणीय राज्ञा सेना हम लहीए ॥६॥३२२।।
उभय संन्य तब सज थई जरह जीण लेइय प्राव्यु अति भलाए । रण काहल रण बाजीयां गाजीयां ढोल नीमाण एकलाए ॥६।।३२३।।
रतनपल रण प्राबीउ भावीच जंत्रमारनि अति रलीय । उभय सैन्य तिहा एक थई, आईस युद्ध करि सवे एकलाए ॥१॥३२४।।
हस्ती-हस्तीसु भाडि असवार प्रसवार साधि प्रति घणउए । रखवंत रथवंत सुकरि, करिय संग्राम पार बिना घग उए ।।११।३२५।।
रतनचूल पासी प्रावीज प्रावीय कुमर कहि विद्याधरूए । मृगांक साही मुझ प्रागनि जीवतु किम रहे सतु नेत्ररूरे ॥१२॥३२६।।
पाठ सहश्न नगमि मारी यावि तुझ तणु वारू अवीउए । जु तुझ माहि बल अछि पछि कांउ विद्याधर ल्यावीउए ॥१३॥३२॥
एणे रांके मारे कांह मछि भापणविन्य जुध करूयकलाए । एसा वजन जल सामलि रण संग्राम करिय विन्यि ते अति भलोए ।।१४||३२८।।
हा-रण काहल रण बाजीयां बागां कोल नीसाण
बाणगा भेर विहां अप्ति षण कोवि ला भि माण ।।१५।।३२६।।
हाल मोह पराजतनी-राग सामेरी
तिहां कोध करी नि कठीया, मुकि बाण अपार ! तिहां मेघ तणी धारा परि बरसि सिणिवार ॥१।। ३३०।।