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________________ ३१२ कविवर त्रिभुवनकोति उत्तम जोसी तेडीउ, लगन लीतिणी वार । मखय तृतीया नु दिन, उत्तम जाणी सार ॥३६॥२०॥ निज मंदिर च्यारि गया, हरफर मन महि । घिर जाई घिर प्राणि, उत्सव करि विवाह ।।४।। महदास घिर इणी परि, उछय हुइ अपार । मंडप खाल्या रूपला, प्रति घणी विस्तार ।।४।।२०७।। तोरण बोध्या रुपडा, चंद्रो या ओसाब । मुगता फलनो बखां, पुष्पतणी नरमाल ।।४२॥२०॥ इणी परि उछय पंच घिरि, गीत गान अपार । महोछर हु अति धणु, को नवि लाभय पार ।।४६॥२०॥ वस्तु-बसंत प्राब्यु बसन्त श्राब्यु प्रति हाली रंग। कामीजन मनरंजनु, पंथीजन उदेष करत । कोकिल कलिरष प्रति, हया मधुप शब्द अधिक । घरता मंडप प्रतिषणा, दान करी बस्संत । विवाह उछव बोयबा, पाव्यु मास बसंत ॥४॥२१॥ हाल सखीनी सखी पाल्य मास बसंत, वन वन वृक्षत मुरीयाए । चंपक चूत रसाल, केसूयडो धणां प्रावीयाए ॥१॥२११।। मलयाचल संभूत बाइ, सुगध बार घणाउए । सुखकरी कामी काय, पंथी जन दुख तण उए २।२१। सखी कोकिल पंचम राग, हंसी हमी सबद करीए । माम्यां वृक्ष प्रसंस्य, घन सकाम पुर धरिए ॥३॥२१३।। सम्बी पाब्यु जाणी बसंत, क्रीड़ा करिबा बन भणीए । नगर लोक समेत. साथि सेना अति धणोए ॥१॥२१४।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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