________________
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल और अब शांतिपूर्ण जीवन यापन करने लगे थे ।२१ यहां रहने के कुछ समय पश्चात ही संवत् १६३० की अषाढ शुक्ला १३ शनिवार को उन्होंने श्रीपाल रास की रचना समाप्त करने का गौरव प्राप्त किया। समाप्ति के दिन अष्टान्हिका पर्व था इसलिये उस दिन समस्त समाज ने मिलकर नयी रासकृति का स्वागत किया। श्रीपाल रास कवि की बड़ी रचनाओं में से हैं तथा उसमें २६८ छन्द हैं।
रणथम्भोर हूंढाड प्रदेश का ही भाग माना जाता है । इसलिये कवि वहाँ से विहार करके सांगानेर की ओर चल पड़े | मार्ग में प्राने वाले अनेक नगरों एवं ग्रामों के नागरिकों को सम्बोधित करते हुये वे संत्रव १६३३ में सांगानेर श्रा पहुंचे सांगानेर तूंढाड प्रदेश का प्रमुस्न नगर था तथा प्रदेश की राजधानी प्रामेर से केवल १४ मील दूरी पर स्थित या । सांगानेर को जैन साहित्य एवं संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रह्ने का गौरव प्राप्त रहा है। उस समय राजा भगवन्तदास ठूढाड के शासक थे तथा अपने युवराज मानसिंह के साथ राज्य का शासन भार सम्हालते थे। सांगानेर पाने के पश्चात् कविवर ब्रह्म रायमल्ल ने अपनी सबसे बडी कृति भविष्यदत्त चौपई को समाप्त करने का श्रेय प्राप्त किया। संयोग की बात है कि भविष्यदत्त पोपई की समाप्ति के दिन भी भ्रष्ट्रान्हिका पर्व चल रहा था । उस दिन शनिवार था तथा संवत् १६३३ की कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी की पावन तिथि थी। नगर में चारों ओर अष्टान्हिका महोत्सब मनाया जा रहा था । इसलिये ब्रह्म रायमल्ल की उक्त रचना का विमोचन समारोह भी बड़े उत्साह के साथ प्रायोजित किया गया। उस समय तक तक ब्रह्म रायमल्ल की ख्याति प्राकामा को छुने लगी थी और साहित्यिक जगत में उनका नाम प्रथम पंक्ति में आ चुका था । वे क्रावि से महाकवि बन चुके थे तथा उनकी सभी रचनायें लोकप्रिय हो चुकी थी।
सांगानेर में पर्याप्त समय तक ठहरने के पश्चात् महाकवि ब्रह्म रायमल्ल घाटसू की ओर विहार कर गये और काठाडा भाग के कितने ही ग्रामों को अपने प्रवचनों का लाभ पहुंचाते हुए वे टोडारायसिंह जा पहुंचे। टोडारायसिंह का दुसरा नाम तक्षकगढ भी है। यह दुर्ग भी राजस्थान के विशिष्ट दुर्गों में से एक दुर्ग है । १७ वीं शताब्दि में टोडारायसिंह जैन साहित्य एवं संस्कृति की दृष्टि से ख्याति प्राप्त केन्द्र रहा । देहली एवं चाटसू गादी के भट्टारकों का यहां खूब आवागमन रहा । ब्रह्म रायमल्ल यहाँ आने के पश्चात् साहित्य संरचना में लग गये और कुछ ही समय पश्चात् संवत् १६३६ ज्येष्ठ बुदी १३ शनिवार के दिन 'परमहंस चौपई' की रचना समाप्त करके उसे स्वाध्याय प्रेमियों को स्वाध्याय के लिये विमुक्त कर दिया।
२१.
हो रपथभ्रमर सोम कवि लाम, भरीया नीर ताल चहुं पास । याग विहरि बाडी घणी, हो धन कए सम्पत्ति तणो निधान ।