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कविवर त्रिभुवनकोति
विषय सुख सहू परिहरिए, परिहरि नारी संग तु । सहू परिहरिए, ध्यान धरि मनरंग तु ।। ३३ ।। १४४ ।।
राम
बरस उरामो सहश्र लगि तप कर अन्त काल दिक्षा घरीए, संयम पाली सार तु
अपार तु ।
||३४|| १४५ ।।
सुभ ध्वानि काल करीए छट्ठा स्गरंग मझार तु । स्मानी देव हुए, इद्र तणु अवतार तु ॥३५॥१४६॥
सागर दर्शन भाषिए, नथि बागि गत काल तु । प्यार देवीस मल रलीए, भोगवि सौल्य रसाल तु ।।१६।। १४७ ।।
सागरचन्द्र तप करीए, पाली घणसण सार तु । विणि स्थग प्रेते हुए, भोगथि सोक्ष अपार तु ॥३७॥१४६॥
बस्तु सृणु श्रेणिक सुणु श्रोणिक एड् कथा सार । विद्युन्माली देवता च्यार नारि इह भाय्यु | आज की दिन सातमि चचीय भवह अवतार । पानि मगध देश राजहि श्रहंदास घिर सार + जनमती कवि अवतार जंबूकुमार भवतार ॥३८॥१४६॥
चुपई - जंबूद्वीप भरत मझार, नयर राजग्रह उत्तम ठार ।
राजकारि तिहां श्रेणिक राय, सबि भूपति प्रथमि त पाय ।। १ । १
नयर घुरंधर श्रेष्ठी वस, मदास नामि उल्हसि । धर्मधुरा घरि मन वीर, समकित भूख्यउ तास शरीर ।। २ ।। १५१ ।।
दाता घरमीनि गुणवंत, राज्य मान प्रति शीलवत । प्यार प्रहार देह बहू दान, मन अहिकार न धरि मान ।। ३ । । १५ ॥
तस विर राणी शीलि सती, चंद्र वदना नामि जिनमती । पोन पयोधर मदनावास, विबाधर कोकिल संकास ॥४॥१५३॥३