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कविवर त्रिभुवनकाति तेह नगरी नु राजीउ ए, ब्रमदंत तेह नाम तु । घोर प्रतापी प्रति भलुए, सोहि अभिनवु काम तु ॥२०॥ तस पट राणी स्यडीए, विशालाक्षी तस नारि तु । भवदत्तु जीव जे पछिए, श्रीजा स्वरग मझार तु ।।१०॥१२॥
तिहां थको चबी उपनुए. तास यपरि अवतार तु । सागरचन्द्र नामि भलुए, दिन दिन वानि अपार तु ।।११।१२२।।
पीतशीका नगरी भली ए, तेह देस माहि जाण तु । मणि माणिक पुरी अछिए रत्न तणी ते खाणि तु ॥१२॥१२३॥ तेह नगरी नु राजीउग, चक्रधर महा पद्म तु । घट खण्ड ते भोगविए पौद रत्न तेद छद्म सु ।। १३११२४॥ नयह निधि घिर प्रति मसीए, सहस्र बीस राय तु । छन् सहम अते घरीए, सेवि तेह न पाय तु ।।१४।।१२।।
अठार कोड तुरंगमाए, लक्ष चउरासी नाग तु । एतला रथ चंदन तणा ए, पायदल तणु गहीं भाग तु ॥१५॥१२६।।
छन उप कोखि प्राम अछिए, सहम बोसह देस तु । पण कोद्धि गोकल अहिए, एक कोचि हल हेसतु ।।१६।।१२०॥
राज रिद्धि सुख भोगविए, पुत्र रहित राय तु। पुत्रनी बोछा जब करिए, सेवि जिनवर पाय तु ।।१७|१२८॥
मषदेव परजे अछिए, स्वरग थकी चवी हे ततु । शिव कुमार नरमि भलु ए, पुत्र हुड तस गेह ॥
१२॥
बीज चंद तणी परिए, दिन दिन वाघि देह तु । माठ बरस जब वु लोया ए, भणया मुक्यु तेह तु ॥१॥३०॥
शास्त्र सवे भणावीउए, प्राम्मु ज्ञाननु संच तु । विवाह मेली परणावीए, कन्या सुभसि पंच तु ॥२०॥१३॥