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________________ ३०२ कविवर त्रिभुवनकीत्ति नारी रूप न रात्रीय, गुण राउ स कोड जनर नारी मोहीया, हो नि जागि लोय ।।१३।। ६७ ।। नवे द्वारे प्रशुचि चविमल पुस्यु तस देह | सत्य भाषि सदा सत्य न बोलि तेह || १४॥ ६८ ।। इथो बचन ज समिली मास्यु मुनिवर लाज । अवो मुख जो घउ, नवि सरयुद्ध सुझ काज ॥१३६॥ जे पूछिति नागला, ते मुझनि तु आण 1 देह कुछित मुझ देखीनि मम कर मोह प्रयाण ।।१६।। १०० ।। मोहि नर दुर्गति सहि, प्रामी दुखनी खाणि मोह करि जे प्राणीया, करि सवि जीव नौहाणि ॥ १७॥ १०१० द्रव्य हतु जे ताहरू, खरचीनि मनोहार | चिरयकराच्यु रूपउ, पुण्य तणु आधार ॥। १५ । १०२३१ परिग्रह सहूइ परिहरी श्रावक व्रत घरी सार 1 हणि स्थानिक तप जप करि, रहती जिन श्राधार ।। १६ ।।१३।। एहवी मुझनि जाणीति, चंचल चित्त मम थाय । निश्चल मन करे श्रापणु, सेवि जिनवर पाय ॥२०॥१०४॥ वचन सुणी नारी तणां लाज लही अपार । नाव समान मुझ तु हुई, उत्तारखा भव पार ।।२१।। १०५ ।। जे नारी सहूइ कहि ते ए नारन होइ । स्वरग मुगति सुख दायनी, एह समान न कोइ ।।२५।। १०६ ।। क्षमा क्षमतभ्य कही, श्राव्यु धनह मकार गुरु चरणे प्रणमी करी, मांगि संयम भार ॥ २३॥। १०७ ॥ भाव चारित्र लेई करो, तप जप करि प्रधोर । राग द्वेष सहू परिहरि, विषय निवारि चोर ।। २४ ।। १०८ ।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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