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जम्बस्वामी बास
भवदत्तादिक नगर लोक, प्राग्या तेणि ठाम || मुनिबर वांदी पाय पूजी, विठा सचिताम ॥१२॥६१॥ मुनिबर बोल्यु बिहुय परि, श्रावक यती धर्म । सात तस्व पुण्य पाप भेद, कह तेहज़ ममं ॥१३॥६॥
धर्म प्रभावि जीव, लहि स्वरग अवतार । पाम प्रभावि नरक माहि, छेदन दुख अपार ॥१४॥६॥
जाइ प्रावि जीव एकलुए, चिहं गति मझार । ए कलु सुख दुख भोगवि ए, जीव इणि संसार ॥१५।। ६४॥
मुनिवर बांगो सनिली, मायदेव बना । बैराग पाम्य भति घणु ए, संसार धी संक्यु ।।१६।१६५
दिक्षा लीधी जिण तणी ए, सवि मूकी संग। चारित्र पासि निर्मलुए, मन घरीय सवेग ॥१७॥६६॥ एकदा मुनिवर चितविए, भ्राता भवदेय । मिथ्यात्व मत माहि पड्यु ए. प्रतिबोधु हेव ॥१८॥६७।। गुरू वादी एक शिव्य लेइ, चाल्यु मुनि तेह 1 भव देव घिर प्रावीउ, दीठ तच गेह ॥१६॥६।।
उछन देखी अति घणुए, पूछि भावदेव । कर कंकण कुण कारगिए, बोलि भवदेव ॥२०॥६६॥
मद्धमान पुर माहि द्विज, दुर्मख नागदेवी । तेर सणी घी नागलए, स्वजने परणावी ॥२१४७०।।
माभली मुनिकर कम कम्युए, सोलि बछ बात । घमं बिना जीव नधि लहिए, इंद्रादिक ता तउ ॥२२॥७॥ वचन सुणी अति बीहनुए, श्रावक व्रत लोघां । सकिति लीघनिर्मलए, मूलगुण दीयां ॥२३॥७२।।