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अम्बूस्वामी रास
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अस्ट प्रकारी पूजा करी जी, स्तवन करि रे नरिंद 1 जग गुरू जंग मुनु राजीउजी, जगप्रय सेवि जिर्णद हो । स्वामी।।६।।१।।
जिन जीइ पम प्रकासीउ जी, कड़ीउ तत्व स्वरूप । चिहगति नां सुग्न दुख कहां जी, से मवि सुणीयां भूप हो स्वामी ।।७।।४२।।
देब एक तिहाँ प्रापी जी, अपहरा च्यार सहेत । देखी मन माहि चमकोउ जी, पुचि देव न देत हो वामी ॥
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राजा श्रेणिक को जिज्ञासा
राई जिनवर पूछीया जी, कह स्वामी कुण एह । विद्युन्माली देवता जी, जिनजीइ कह सह हेत हो स्वामी ॥जम ४|
काज यकी दिन सातमि जी, चसि एहज देव । पन माहि संदेह प्रामित्र जी, पूछि थेणिक हेव हो स्वामी ।।जय।।१०।४५
पूरवि तमो इम कहू जी, पट मास इह ज प्रायु । ठंमाला म्लनिज हुइ जी, तेह हद सुछ आयु हो स्वामी जग।।११॥४६॥
बैंक भावी पूजा करी जी, विठउ सवि परिवार । एतलि राह पूछी जी, देवनु सहुई विचार हो स्वामी । जम॥१२॥11
सांभल राजा तुझ कद जी, देवनु सहूइ विचार ।
एक मनां महू सांभलु जी, जिम लहू सोख्य अपार हो स्वामी ॥जग।१३।४।। भ० महावीर द्वारा समाधान
बस्तु वंध-तुणु राजन सुण राजन देव चरिष ।
भवदस्त भवदेवनु कह चरित्र, मन पाणंद प्राणी । नप जप संयम प्राचरी घरीय ध्यान मन ज्ञान बाणी । प्राज थकी दिन सातमि स्वर्ग थकी चवी सार । देव देवी सुम्स भोगवी, मध्य लोक प्रवतार ||१४॥४६।।