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जम्बूस्वामी रास
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इस गति चालि चमकती, रूपि भा जाणउ मती। मस्तक वेणी सोहि सार. कंठ सोहिए का उस डार ।।२० ।
काने कुचल रत्ने जडयां, चरणे नेजर सोवन धशा । मधुर वयण बोलि सुविचार, अग अनोपम् दीसि सार ।।२१।।
राय तणी राणी छि इसो, सुख विलास ते हम उल्हमी । तेह सरसु भोगवह सुख भोग, तेह सरसु भवि लहि वियोग ।।२२।।
काल गउ नवि जाणि राय, राज्यपालि जिन पूजि पाय । चिहु प्रकार देह बहु दान, मन अहिङ्कार न धरि मान ।।२।।
पुण्यि धरि घोड़ा नीलाम, पुण्यि घिर लक्ष्मी तु वाम । पुण्य पिर रिघि अविसार, ए सहू पुण्य तणु विस्तार ॥२४॥
भगवान महावीर के समवसरण का आगमन दहा-एक दिवस विपुलाचलि. प्राध्या वीर जिणंद ।
समोसरण धनदि रचउ सीख लेइ त ब द ।।२५।।
रयण सुवर्ण रूपयामि, घूली गढ़ ए च्यार गढ गढ प्रति सोभति पोल अछिच्यार च्यार ||२६।।
मानस्तंभ अति रूमडा सोहि च्यार उत्तंग । यायव सिद्ध जा सह लहि, माहवानन करि चंग ॥२७॥
निमय प्रादि प्रति भली, बार सभा माईत । चतुर्निकाई देवता, तिहां अछि अनंत ।।२८।।
मध्य सिंघासण विसणि, विठा जिनपर भाण । सप्त भंगी वाणी हुई, गोजन एक प्रमाण ॥२६॥
भामंडल पूठि भलु . दिनकर कोडि समान । छत्र अय अति रूयडा पंच, परि बली ज्ञान ।।३०।।