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कविवर त्रिभुवनकीति
मेर थकी दिक्षण विभाग, भरत क्षेत्र बमि तिहां लाग । पंत्रसि योजन छत्रीस. छह कलावर जाण ईश |६||
मगध देश अछि तिहां चंग, सविहू देश माहि मन रंग । राइण केल अनिसहकार, दाडिम द्राव तणत नहीं पर ।।१०।।
ठाम दाम दीसि प्रासाद, झालरि हॉल दादांमा नाद । कनक कलस ध्वजा लहकंत, ठाम ठाम मुनिबर महत ।।११।।
मटंब धोख करबट छिपणा, पुर पाटण नगर नहीं मणा । टाम ठाम पर्वत उत्सग, मुनिवर ध्यान धरि रही श्रग ।।१२॥
देश मध्य मनोहर ग्राम, नयर राजग्रह उत्तम ठाम । गढ़ मढ़ मदिर पोल पगार, परहटो हाट तणु नहीं पार ।। १३11
धनयंत लोग दीसि तिहां घणा, सज्जन लोक तणी नहीं मणा । दुर्जन लोक न दीसि ठाम, चोर चरड नहीं तिहां ताम ।।१४।।
धरि परि वाजिन्न वाजि चंग, घिर घिर नारी रि मन रंग । धिर धिर उछध दीसि सार, एह सहू पुण्य तण विस्तार ।।१।।
राजा धेणिक एवं चेलना रानी का वर्णन
तिणि मयर श्रेणिक छि राय, सवि भूपती जीता भडवाय । शन करी सुर वृक्ष समान, याचकनि देह बहुदान ।।१६।।
धर्म त राय करि विस्तार, पाप तणु करि परिहार । समकित रयण भूक्ष पारीर. कामदेव सम रुपि धीर ।।१७।।
ज्ञान विज्ञान जाणि सवि भूप, जीवा जीवा जाणि स्वरूप । प्रथम तीर्थकर मनागत सार, कर्म ताणुउ करि परिहार ।।१।।
से धरि राणी चेलना कही, सली सरोमण जाणु सहो । समकित भूक्षउ तास सरीर, धर्म ध्यान घरि मन धीर ।।१६।।