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________________ अथ जम्बूस्वामी रास लिख्यते मंगलाचरण वीर जिणर २ नमते सार । तीर्थकर चुबीसमुदाँछित फल बहु दान दातार । बालपणि रिधि परिहरी, वरीय सयम भार मार । रुद्र पूरीसह प्रति सही, करी वली तप प्रचार । हूया ते मुगति नाराजीया कमहणी कटोर ॥१॥ हा- तीर्थकर वीस जे पूर्शव हूया ते सार । तास चरण प्रणमी करी, कवित करू' मनोहार ।।२।। सिद्ध सूरि उवज्झायना, प्रणमी साधु मुनिद । हृदय कमल बिकासवा, जाण अभिनव चद ।।३।। केवल वाणी रूपही, मनधरी सारद माय । निर्मल मति मुझ प्रापज्यों, प्रणयुतमचा पाय ।।४॥ श्री उदयसेन सूरी वर नमी, त्रिभुवनकोत्ति कहि सार । रास कहुँ रलीयामणु, अक्षर रयण भंडार ।।५।। भवीयण जन समे सांभलु, चरित्र जम्बूकुमार । सार सोक्ष जम लहु, बाँछित फ़ल बहु सार ।।६।। मगध देश की राजधानो राजगृही का वर्णन चुपई-सायर द्वीप प्रसंख्या जाण, तेह मध्य जंबू द्वीप बग्याण । लक्ष योजन कुडल भाकार, त्रिगुणी परिधि पछि विस्तार |1911 मेर सुदर्शन मध्यि का , सहश्र नवाणु' रक्षु । सइच योजन भू मध्यि जाण, पंघ वर्ण रत्न मिव बस्याग ।।८।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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